Monday, October 22, 2018

आने के लिए नहीं जाता कोई ....


आने के लिए नहीं जाता कोई
शाम ढलती है
रात चुपचाप चली जाती है
सुबह नहीं लौटता वो ही
जो गुज़र चुका होता है

आज कली, कल फूल है
फूल कल फिर नहीं खिलता
जो चला जाता है कहकर
कि लौट आऊँगा
वह पहले सा कभी नहीं मिलता

जो इंतज़ार में टकटकी लगाए
बैठा रहता है बरसों
वो अपनी हँसी हँसता
और अपने दुःख से ही रोता है
लौटने पर उससे कब सब कहता है

कि जाने और आने के बीच
पहाड़ से दिन और समुन्दर सी रातों ने
कैसे उसे जीना सिखाया
कब थाम लिया अनजाने ही
सहारे के लिए कोई हाथ

सब साबुत होने का दावा
नहीं कर सकता लौटने वाला
एक स्पर्श, एक निगाह या
छोटी सी किसी की याद
छुपा लाता है मन की परतों में

फिर क्यूँ जाता है कोई
आने का वादा करके
कोई गुंजाइश बाक़ी क्यूँ रहे
जाना है जिसे वो चला जाए
देह से आत्मा की तरह।

9 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 22 अक्टूबर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 23 अक्टूबर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 145वीं जयंती - स्वामी रामतीर्थ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Anuradha chauhan said...

फिर क्यूँ जाता है कोई
आने का वादा करके
कोई गुंजाइश बाक़ी क्यूँ रहे
जाना है जिसे वो चला जाए
देह से आत्मा की तरह। सुंदर रचना 👌👌

दिगम्बर नासवा said...

गहरी अभिव्यक्ति ...
सच लिखा है ... समय का अंतराल नई यादें जोड़ देता है और लौटने वाला उन सब के साथ आता है ...

Abhilasha said...

बहुत ही सुन्दर रचना

Ankit choudhary said...

बहुत ही सुन्दर रचना ...

How do we know said...

कितना गहरी चुभती है ये रचना। आंख की शर्म रहे, सच्चाई रहे, ये इतना मुश्किल तो नहीं!

मन की वीणा said...

अंतर तल से निकली गहरी खोज,
सच जाने वाला कहां फिर आ के भी वैसा ही आता है।
बहुत सुंदर रचना