Wednesday, June 20, 2018

लद्दाख में अंति‍म दि‍न





अब और कुछ संभव नहीं था कि‍ देखा जा सके। हम होटल की ओर लौट चले। रास्‍ते में स्‍थानीय बाजार का एक चक्‍कर लगाया जहाँ दुकानदार लोग हाथों में छोटे-छोटे धर्म चक्र घुमाते हुए सूखे खूबानी और बाकी दैनि‍क उपयोग की चीजें बेच रहे थे। ज्‍यादातर ड्राई फ्रूट्रस ही थे। ऐसा वि‍शेष कुछ नहीं जो लि‍या जाए। हमने बस कुछ खूबानी पैक करा लि‍ए। 


बाजार घूमते समय एक वि‍शेष चीज सह जरूर लगी कि‍ वहां सब कुछ उपलब्‍ध है। सारी आधुनि‍क सुवि‍धाएं है। खाने-पहनने और सजावट का सारा समान उपलब्‍ध है। लेह, लद्दाख का जि‍ला मुख्‍यालय है। खूब चहल-पहल है और सकड़ों पर जाम भी लगता है जैसा हमारे यहां। लौटते वक्‍त हम भी बहुत देर फंसे रहे। वह तो हमारा ड्राइवर सभी गलि‍यों से वाकि‍फ़ था , तो इधर-उधर से हमें नि‍कल ले गया। मगर इतनी देर और इतने दि‍न में यह समझ आ गया कि‍ सैकड़ों मील दूर से लाई गई सब्‍जि‍यां और फल उपलब्‍ध हैं। पुरानी पीढ़ी तो परंपरागत लि‍बास पहनती है मगर नए फैशन की मुरीद है नई पीढ़ी। 

जीवनशैली बहुत सरल और प्‍यारे लोग रहते हैं लद्दाख में। यहां के वासी हि‍ंदी आराम से समझते और बोलते हैं। राज्य में बोले जाने वाली आम भाषाओं में लद्दाखीपुरिगतिब्बतनहिन्दी एवं अंग्रेजी शामिल हैं। यहां के लोग हाथ में भी छोटा-सा प्रेयर व्हील लेकर घूमते हैं।  इसमें एक कागज में मंत्र लिख कर रखा जाता है। जब इस  प्रेयर व्हील को घुमाया जाता है तो यह मंत्र उच्चारण का प्रभाव देता है। मेरा मन भी हो रहा था कि‍ एक प्रेयर व्‍हील ले लूं। यहां के पर्व के बारे में पूछताछ से पता चला कि‍ तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है साका दावा’ जिसमें गौतम बुद्ध का जन्मदिनबुद्धत्व और उनके नश्वर शरीर के ख़त्म होने का जश्न मनाया जाता है। इसे तिब्बती कैलेंडर के चौथे महीने मेंसामान्यतः मई या जून में मनाया जाता है जो पूरे एक महीने तक चलता है।

गाल्डन नमछोटबुद्ध पूर्णिमादोसमोचे और लोसर नामक त्यौहार पूरे लद्दाख में बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते है और इस दौरान यहाँ पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ती है। दोसमोचे नामक त्यौहार दो दिनों तक चलता है जिसमें बौद्ध भिक्षु नृत्य करते हैंप्रार्थनाएँ करते हैं और क्षेत्र से दुर्भाग्य और बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए अनुष्ठान करते हैं।  मैं जि‍तना अधि‍क जान सकूं लद्दाख को, इस कोशि‍श में थी। हायर सेकेंडरी तक शि‍क्षा दी जाती है। मगर सि‍नेमा हॉल एक भी नहीं दि‍खा। दुकानों की भरमार है। महि‍लाएं भी खूब संभालती हैं बाजार। 

हम वापस होटल आए तो बच्‍चों ने जि‍द की कि‍ हर दि‍न यहां खा रहे खाना, इसलि‍ए आज कहीं बाहर जाएंगे। लेह का प्रसि‍द्ध 'ति‍ब्‍बती कि‍चन' हमारे होटल के पास ही में थो। वहां खूब भीड़ होती है। लोग कतार लगाकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। वि‍देशि‍यों की भीड़ लगी थी वहां। हमने भी कैंडि‍ल लाइट डि‍नर लि‍या। खाने का स्‍वाद बि‍ल्‍कुल हमारे शहर के जैसा। जो चाहो, उपलब्‍ध। शायद यही वजह है कि‍ वहां इतनी भीड़ होती है। 

खाने के बाद कुछ दूर तक टहलने नि‍कले। पास ही में एक जगह घेरकर छोटा सा बाजार बना दि‍या गया था। दुकानों के मालि‍क महि‍ला-पुरुष दोनों ही थे। ति‍रपाल से ढककर बंद होने ही जा रहा था। कुछ और देखने की ललक से हम घूमने लगे। कुछ मोति‍यों की माला, कुछ इयररि‍ंग्‍स और पायल ले लि‍ए अपने संगी-साथि‍यों को सौगात देने के लिए। यहां आकर सबसे कटी रही क्‍योंकि‍ फोन केवल पोस्‍टपेड ही काम करते हैं। जि‍ओ का नंबर भी नहीं काम आया यहां।



रात भर की बात थी। सुबह जल्‍दी उठकर सबसे पहले छत की ओर भागे। भूरे-कत्‍थई रंग के पहाड़, पहाड़ों के ऊपर बर्फ की परत और हरे लहराते पॉपलर के पेड़। अब एयरपोर्ट की तरफ। हसरत भरी नि‍गाहों से लेह को देखते हुए। जि‍म्‍मी ने हमें एयरपोर्ट पर जुले-जुले कहकर वि‍दा कि‍या। हम उसके शुक्रगुजार हैं क्‍योंकि‍ वह महज ड्राइवर नहीं, गाइड भी बन गया था। हमारी सुवि‍धा और पसंद का पूरा ख्‍याल रखा जि‍म्‍मी ने यात्रा के दौरान। 
 लेह से दि‍ल्‍ली की उड़ान फि‍र वापस अपने घर रॉची। बहुत प्रि‍य हो गए लद्दाख। आऊंगी दुबारा....जुले-जुले। 

हमारा ड्राइवर जि‍म्‍मी.


                                              .......समाप्‍त...... 

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