मन पलाश का बहके
तन दहके अमलतास का ।
कर्णफूल के गाछ तले
ताल भरा मधुमास का ।
तन दहके अमलतास का ।
कर्णफूल के गाछ तले
ताल भरा मधुमास का ।
अधरों के स्पन्दन से
खुली आँख के स्वप्न से
किसलय कई खिले आलि
ठूंठ पड़े इस जीवन में
छाया प्रणय आभास का ।
खुली आँख के स्वप्न से
किसलय कई खिले आलि
ठूंठ पड़े इस जीवन में
छाया प्रणय आभास का ।
बदरा फूटा मेह से
भीगा अँचरा नेह से
हर आखर में प्यार लिख
रच पतरा प्रीतालेख का
कसाव जैसे दृढ बाहुपाश का ।
भीगा अँचरा नेह से
हर आखर में प्यार लिख
रच पतरा प्रीतालेख का
कसाव जैसे दृढ बाहुपाश का ।
धूपीली दोपहरिया में
आँखे लगी देहरिया में
खबर आज भी कोई नहीं
दग्ध तप्त बैसाख में
मन सूना है आकाश का ।
आँखे लगी देहरिया में
खबर आज भी कोई नहीं
दग्ध तप्त बैसाख में
मन सूना है आकाश का ।
10 comments:
धूपीली दोपहरिया में
आँखे लगी देहरिया में
खबर आज भी कोई नहीं
दग्ध तप्त बैसाख में
मन सूना है आकाश का ।
..बहुत सुन्दर ...
जग सूना-सूना
दग्ध तप्त बैसाख में
दिनांक 18/04/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
बहुत ही भाव भीनी रचना कृपया साझा करने की अनुमति दें।
बहुत ही भाव भीनी रचना कृपया साझा करने की अनुमति दें।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
बहुत सुंदर भाव लिए ... लाजवाब रचना
बहुत सुन्दर !कमाल की पंक्तियाँ आभार।
बहुत सुंदर
खूबसूरत रचना
अत्यंत ही खूबसूरत रचना,,,,रश्मि जी।
पहली बार पढी है आपकी लिखी रचनाएं, लेकिन अब मुझे निरन्तर पढना होगा ।।।। धन्यवाद
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