Friday, September 16, 2016

तम अंधियारे का हर ले...


तम अंधियारे का हर ले तू जोत जला नई कोई ।।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।

नीलगगन से गागर छलकी बूंदों से अमृत बरसा ।
उजियारी  पावन बेला में मन जले दीप सा हरसा ।
कालनिशा सी देख निराशा जाके दूर कहीं खोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।

शुभ्रदीप की नवल ज्योत्स्ना आशा भर भर लाई ।
नई फसल ने घूंघट खोल भरे खेत में ली अंगड़ाई ।
स्वर्ण भास्कर की किरणों से दैन्य रहा ना कोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।

दिव्य देव  सब प्रकट हुए है इस पावन रुत में ।
उपवन में जा कर रम जा पूरब  की मारुत में ।
इंद्रधनुष ने बादलों में मद केसर  क्यारियां बोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।

सुमन अनगिनत खिले चतुर्दिश मनमलिन हरने ।
परबतों के  पत्थर सीने पिघल बन गए झरने ।
सुवर्णजुही बोने को देख आया माली नवल कोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।

तम अंधियारे का हर ले तू जोत जला नई कोई ।।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।

1 comment:

अजय कुमार झा said...

हां बहुत सुंदर भाव रश्मि जी बहुत ही प्यारी पंक्ति मनमोहक पोस्ट बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको शुक्रिया