Wednesday, June 22, 2016

डलहौजी : हि‍माचली स्‍वाद और आराम का एक दि‍न

होटल परि‍सर जहां हम ठहरे थे

हरि‍याली और मैं 

आज अंति‍म दि‍न, जब हमें डलहौजी में रात गुजारनी थी। कल रात की ट्रेन, फि‍र दोपहर को दि‍ल्‍ली से प्‍लेन, शाम तक अपने घर। अब तय यह करना था कि‍ आज चंबा जाकर लौट आएं, या कल सुबह ही यहां होटल छोड़ दें और दि‍न में चंबा घूमते हुए आठ बजे तक पठानकोट। यहां तो लोगों ने यह भी कहा कि‍ क्‍या जाइएगा चंबा, वहां कुछ नही है, ऊपर से मौसम भी गर्म है।
मगर जब से ताल फि‍ल्‍म देखी थी, चंबा जाने की इच्‍छा तब से ही थी। तय हुआ कि‍ आज यहीं आराम कि‍या जाए। डलहौजी की प्रकृति‍ में शानदार वक्‍त बि‍ताकर कल सुबह ही इसे बाय-बाय कर दे।

आदर्श फूलों के संग 

तो आज का दि‍न पूरा खाली। आज हमलोग बस खाएंगे और घूमेंगे। मुझे तो आदत है जहां जाऊं वहां का खाना खाने की। अलग-अलग स्‍वाद भाते हैं। पि‍छली बार उत्‍तराखंड कौसानी में खाए झंगोरे की खीर आलूू के गुटके और राजस्‍थान की दाल-बाटी का स्‍वाद अब भी याद है। मैंने दो दि‍न पहले ही वेटर से कह कर एक हि‍माचली व्‍यंजन 'सि‍दू या सि‍ड्डू' का स्‍वाद ले चुकी थी। होटल के मेन्‍यू में कुछ पहाड़ी व्‍यंजन थे जि‍से वि‍शेष आर्डर पर बनाया जाता है। सि‍दू को आटे से बनाया जाता है जि‍सके अंदर पोस्‍ता भरा जाता है। इसे खाने के लि‍ए देशी घी, मधु और हरी चटनी का प्रयोग कि‍या जाता है। इसे भाप से पकाया जाता है। मुझे अच्‍छा लगा।
उन्‍होंने बताया था कि‍ जि‍स दि‍न चावल खाएंगे आप तो 'मदरा' खि‍लाऊंगा। रात के खाने के लि‍ए मदरा आर्डर कि‍या। यह राजमा से बनता है, जि‍समें घी की मात्रा इतनी ज्‍यादा होती है कि‍ बस। हालांकि‍ चावल के साथ खाने में बहुत अच्‍छा लगा।
हि‍माचली व्‍यंजन सि‍द्ददू 

खैर ये तो हुई खाने-पीने की बात। हमलोग आराम से सोकर उठे। इत्‍मीनान से नाश्‍ता कि‍या। पास के पेड़ों पर बैठे बंदरो से अभि‍रूप की अच्‍छी दोस्‍ती हो गई थी। मॉलरोड से खरीदी गई खूबानी और आलूबुखारा का स्‍वाद इन बंदरों ने भी लि‍या, अभि‍रूप के सौजन्‍य से। वहीं एक कलगी वाली चि‍ड़ि‍या आई। बड़ी खूबसूरत।

अभि‍रूप का दि‍या फल खाता बंदर 

कलगी वाली चि‍ड़ि‍या 

हमने गाड़ी मंगवाई और एक बार फि‍र गांधी चौक का चक्‍कर लगा आए। वहां डलहौजी कैफे में खाया। कुछ खरीदा और वापस। हमारीी योजना थी कि‍ हम फि‍र से आज शाम बकरोटा पहाड़ को पैदल नापेंगे। मगर बच्‍चों ने इंकार कि‍या। तो उन्‍हें होटल में ही छोड़कर हम नि‍कल पड़े। मगर फि‍र बारि‍श....कुछ देर तक यूं ही घूमे। भीगे। बारि‍श की बूंदों को चीड़ पर ठहरता और गि‍रतेा देखते रहे। गुलाब पर अटकी बूंदे बेहद खूबसूरत लग रही थी। कुछ महि‍लाएं इवनि‍ंग वाक पर छतरी लेकर नि‍कली। कुछ ति‍ब्‍बती महि‍लाएं भी घूम रही थी। बाकी पर्यटकों का आना-जाना था। हम एक खाली मकान के बाहर बारि‍श से बचने के लि‍ए घंटे भर रूके रहे। पर बारि‍श आज थमी नहीं। लगा नहीं जा पाएंगे, तो वापस होटल चल दि‍ए।

बारि‍श में भींगता गुलाब 
एक सुंदर दृृश्‍य 

जरा एक पि‍क हो जाए 
वहां जाकर ट्री हाउस में बैठकर चाय पी। पहाड़ के सौंदर्य को आंखों में भरा। बारि‍श ने ठंड बढ़ा दी थी।  चीड़ और देवदार के पेड़  धुंध से छि‍पे नजर आ रहे थे।  धौलदार पर्वत श्रृखंला में स्‍थि‍त डलहौजी ने हमारा मन मोह लि‍या। हम आंखों में भर लेना चाहते थे यहां का सौंदर्य और मौसम के अहसास को। 

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