Friday, March 4, 2016

मैं उससे ऐसे मि‍ली.............


मैं उससे ऐसे मि‍ली
जैसे आईने से मि‍लता हो कोई,  अल्‍ल्‍सुबह
सजने-संवरने से पहले
बस आंख खुले और सुबह को
पहली बार अपना उनींदा चेहरा देखे कोई.....

मैं उससे ऐसे मि‍ली
जैसे सर्द दि‍नोें में कि‍सी एक रोज
लापता सूरज की हल्‍की तपि‍श पा
अपना बंधा बदन खोल
देर तक धूप दि‍खाना चाहे कोई......

मैं उससे ऐसे मि‍ली
ढलती शाम को
अचानक हुई बारि‍श से बचने को
कि‍सी ओसारे में आसरा लि‍ए
अपना सि‍हरता बदन अपने ही हाथों कसे कोई ...

मैं उससे ऐसे मि‍ली
सहरा की नर्म ठंढ़ी रेत पर
चांदनी तले अलसाया बदन पड़ा हो
कि‍सी शमि‍याने में आधी रात को रौशन कर
आवाज लगाए
कतरा-कतरा रात पि‍घले
सख्‍त उंगलि‍यों की ताप से
सरापा जि‍स्‍म पि‍घला जाए कोई

मैं उससे ऐसे मि‍ली
वक्‍त के ताखे पर  सदि‍यों से जड़ी तस्‍वीर से
जैसे मि‍ले कोई
अब
रोज दि‍या यादों का जले
कि‍सी उजड़े गांव की सरहदों में
सदि‍यों से कि‍सी को पुकारता घूमे कोई......

तस्‍वीर..पटुओं की हवेली में एक जोड़े की..


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