सफ़ेद घास है डोलता कास है
गर्म हवा आएगी, रेशे उड़ा ले जाएगी
क्या पता सफ़ेद बादलों की झोली में
बची हो कुछ बूंदे बरसात की
एक दिन झमझमा के बरस जाएगी
धान के हरे पौधों को भिगाएगी
और
हरी धरती की मांग पर सजे
सफेद कास के फूल झर जाएंगे
बिन फूलों के पाैधे
उदास हो जाएंगे
जब सफेद रेशे हवा में दूर बिखर जाएंगे
किसी ढाकिए की ढोल में सज
माता पूजन को जाएंगे
ये प्रकृति है, अगले साल
फिर कास के फूल
हरी धरती के मांग सजाने
बर्फ के रेशे से सफेद जंगल
इन पठारों पर फिर उग आएंगे।
अभी ख्िाले हैं कास के फूल
रेशा-रेशा हवा में डोलता
डूबते सूरज को जैसे
विदा करता हाथ हिला
अश्विन मास अभी दूर है। मुझे हैरत हुई जब चारों तरफ कास के फूल लहलहाते दिखे। किसान भाद्र मास में बरखा के इंतजार में टकटकी लगाए हुए हैं। हमें तो पता था कि कास का यौवन यानि वर्षा का बुढ़ापा। मगर अब सब उल्टा हो रहा है। कहां मौसम अपनी पहचान न खो दे।
पर हैं बहुत खूबसूरत ये धरती पर हरियाली के बीच कास के सफ़ेद फूल। कहीं-कहीं तो सर के ऊपर निकले दिखे कास। मन मोह लिया इस नजारे ने।
झूमो कास जैसे झूमे मन आसिन मास
हरे धान के खेतों में
लहलहा रहे है
कास के फूल
किसी के आस के फूल
2 comments:
वाह, बहुत सुंदर
वाह ... बहुत ही खूबसूरत शब्दों और चित्रों का समन्वय ....
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