Saturday, July 4, 2015

पास-पास ही रहूंगी....


न सींचो
शब्‍द-जल से
कि एक दि‍न
पल्‍लवि‍त-पुष्‍पि‍त हो
घना तरूवर बनूंगी...

है चाहत
तो धर लो
मुट्ठि‍यों में
बन कपूर की
पहचानी सुगंध
कहीं पास-पास ही रहूंगी.....

4 comments:

Onkar said...

बहुत सुन्दर

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

अभिषेक शुक्ल said...

रचना पसंद आई।

दिगम्बर नासवा said...

चाहत दोनों ही हैं ... किसी एक को निभाना आसान नहीं ...