Friday, October 25, 2013

तेरी याद वाली हि‍चकी.....


फि‍र आई
तेरी याद वाली हि‍चकी

अक्‍टूबर की गुलाबी सर्दी में
बरस रहा बादल
सि‍हर-सि‍हर रहा तन
छू गई तेरी याद की बूंदे
फि‍र आने लगी
तेरी याद वाली हि‍चकी

सुबह की हल्‍की धुंध में
ओस भीगा गुलाब
खि‍ल उठा और..कुछ और
भार से बूंदों की
झुक गई हरी दूब
नम हवा ने जैसे छुआ हो
कि‍सी के मूंगि‍या लब
ये देख मुझे

फि‍र आई
तेरी याद वाली हि‍चकी

तस्‍वीर--साभार गूगल 

8 comments:

संतोष पाण्डेय said...

कौन याद करता है, हिचकियाँ समझती हैं।

Amit Chandra said...

बहुत खुबसुरत रचना.

सादर.

Unknown said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति

विभूति" said...

भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने..

Aparna Bose said...

PYARI RACHNA HAI

दिगम्बर नासवा said...

कितना कुछ अपने साथ ले आई ... तेरी याद वाली हिचकी ... प्रेम का एहसास लिए ...

Dr. Shorya said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...