Thursday, October 10, 2013

ये गम़ बहुत है मेरे लि‍ए......


नहीं चाहती...तुम्‍हारी यादें बूंद बनकर नाजुक हरसिंगार पर ठहरे......और गि‍र पड़े...नहीं भूली मैं तुम्‍हें...पल भर को भी नहीं...पर चुप्‍पी की छतरी तान बचा रखा है खुद को....भीगने से...रोने से...मैं जानती हूं....तुम मेरी कमजोरी बन गए हो....मगर मुझे कमजोर होना पसंद नहीं। मैं नहीं सह सकती ये..इसलि‍ए दूर चली आई हूं तुमसे....बहुत दूर....

तुम्‍हें याद है वो दि‍न , जब शाम ढलने को थी ,नीले अंबर पर चांद मुस्‍करा रहा था। .....मैं खोई थी  इस अहसास में कि अब जिंदगी के पास  कुछ बचा नहीं बाकी  मुझे देने को....जब से तुम्‍हें मेरा बना दि‍या उस रब ने
....
तभी हौले से तुमने  कहा -अगर मैं जाने लगूं , या  लगे कि‍ मेरा ध्‍यान भटक रहा है कहीं,तो रोक लेना मुझको ...क्‍योंकि मैं नहीं चाहता तुमसे दूर होना.....

आह.....ये ख्‍़याल भी क्‍योंकर आया तुम्‍हें....मैंने तो ख्‍़वाब में भी कल्‍पना नहीं की..कि कोई दि‍न ऐसा भी आएगा जिंदगी का....जब तुम्‍हें और तुम्‍हारे अहसास को अपने आसपास महसूस न करूं...तुम्‍हारी खुश्‍बू को दूर होते देखूं..

ये मेरी हार है...मेरे प्‍यार की हार है...मैं ये बर्दाश्‍त नहीं कर सकती कि तुम मुझसे दूर हो जाओ....या मेरे होते हुए कोई और तुम्‍हारी आंखों में अपनी छवि‍ भी दे जाए.....

ये गम़ बहुत है मेरे लि‍ए....मुझे नीले अंबर के चांद के साथ अब छोड़ दो ...अकेला...जाओ तुम भी..चले भी जाओ...अब मैं दूर हूं तुमसे

समझ लेना मेरे प्‍यार की  उम्र उस हरसिंगार के फूल सी थी....जि‍से शाम ढले खि‍लना और सुबह से पहले गि‍र जाना था........

(चांद की तस्‍वीर...जो अभी-अभी आसमान में रोशनी बि‍खेर रहा है...)