Friday, January 11, 2013

मुकम्‍मल....

सुनो....
अब भी मैं
थमी हूं
वहीं...उस पल में
जिस वक्‍त
तुमने कहा था
बस....
तुम रहना
हमेशा रहना
साथ
मुझे मुकम्‍मल
होने देने के लि‍ए.....

क्‍या तब तुमने
सुना था
मेरी चुप्‍पि‍यों को,
देखा था
भावनाओं को
मुखरि‍त होते
कि
मैं हूं ही इसलि‍ए
पास तुम्‍हारे
कि तुम्‍हें मुकम्‍मल कर
खुद को भी
पा सकूं........

15 comments:

कविता रावत said...

मैं हूं ही इसलि‍ए
पास तुम्‍हारे
कि तुम्‍हें मुकम्‍मल कर
खुद को भी
पा सकूं........
..सच बिना मुकम्‍मल हुए किसी को मुकम्‍मल नहीं कर सकता कोई ..
बहुत बढ़िया रचना

रश्मि प्रभा... said...

प्यार और समर्पण मौन मुखरित

सदा said...

तुम्‍हें मुकम्‍मल कर
खुद को भी
पा सकूं........
बहुत खूब

रविकर said...

सुन्दर भाव-
आंदोलित कर गए -
वाह वाह क्या बात है, मुलाक़ात मुस्काय |
नयनों में मधुमास है, चीं चीं चुप चुबलाय |
चीं चीं चुप चुबलाय, भरोसा आश्वासन है |
सर्वश्रेष्ठ यह युगल, वृक्ष भी इन्द्रासन है |
दोनों एकाकार, स्वयं के छवि की ख्वाहिश |
बहती प्रेमधार, आज फिर होगी बारिश ||

आशा बिष्ट said...

ACHHE SHBD

virendra sharma said...

सुन्दर मनहर प्रस्तुति .भाव अर्थ की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है रचना में .

Unknown said...

Vah kya khoob anubhutio ka charam aur param bindu

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
क्या कहने

Unknown said...

बहुत बढ़िया ख्वाहिश श्रेष्ठ रचना मैं हूं ही इसलि‍ए
पास तुम्‍हारे
कि तुम्‍हें मुकम्‍मल कर
खुद को भी
पा सकूं........

Sunil Kumar said...

बहुत खूब....

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बढिया
बहुत सुंदर

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

बहुत निजी अहसास का अति सुन्‍दर वर्णन।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत खूब,,लाजबाब अभिव्यक्ति,,,

recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत खूब,लाजबाब अभिव्यक्ति,,,

recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

रचना दीक्षित said...

मैं हूं ही इसलि‍ए
पास तुम्‍हारे
कि तुम्‍हें मुकम्‍मल कर
खुद को भी
पा सकूं........

सशक्त रचना अनुपम भाव लिये. रश्मि जी बहुत सुंदर.

लोहड़ी, पोंगल, मकर संक्रांति और बिहू के पर्व पर शुभकामनायें.