Wednesday, October 10, 2012

हाथ छूटे भी तो रि‍श्‍ते नहीं छूटा करते...... (((..श्रद़धांजलि..)))

तुमसे बि‍छड़कर तुमको भुलाना.....मुमकि‍न है आसान नहीं....
शायद अंति‍म गजलों में से एक है यह गजल जगजीत जी की आवाज में.....
एक बरस..बीत गया एक बरस, दस अक्‍टूबर...फि‍र आ गया मगर वो चला ही गया हमें छोड़कर जि‍सकी आवाज बार-बार जेहन में उभरती है और उतरती ही जाती है...। यादों के पन्‍ने पलटने पर एक फि‍ल्‍मी गजल याद आती है जि‍सने कहीं छुआ था....होंठो से छू लो तुम..मेरा गीत अमर कर दो। फि‍र तो जैसे-जैसे उम्र की सीढ़ि‍यां चढ़ती गई...जगजीत की आवाज को दि‍ल में उतारती गई....तमाम रातें उनके गाए गजलों के साथ....नींद के कच्‍चेपन में उनकी आवाज ऐसे आती...बोल इस तरह गूंजते कानों में...जैसे पास बैठा हो कोई....
फि‍र तो एक हसरत पलने लगी....कि‍ काश...एक बार....बस एक बार उनका लाइव शो सुनूं....उन्‍हें पास से देखूं...
यह हसरत पूरी भी हुई...2010 की 23 अक्‍टूबर को...जब वो रांची आए। चाह इतनी जबरदस्‍त कि‍ छोटे बेटे को घर छोड़कर इसलि‍ए चली गई कि‍ वो मुझे ठीक से सुनने नहीं देगा....। जि‍मखाना क्‍लब में गजल प्रेमि‍यों की इतनी भीड़ उमड़ी..कि‍ पूछि‍ए मत। वाह..वाह..की कोई कमी न थी। शरद पूर्णिमा भी अपने शबाब पर थी। वह रात...अवि‍स्‍मरणीय रात बन गई थी रांचीवासि‍यों के लि‍ए।
और ठीक उसी अक्‍टूबर में अगले बरस...खो दि‍या हमने उन्‍हें...सब जाते हैं हमें छोड़कर...मगर यूं जाना..जैसे अपना हि‍स्‍सा चला गया हो कहीं....
कलर्स चैनल में देखा था उनका इंटरव्‍यू...उनकी नई एलबम की गजल के बोल थे....दूरि‍यां बढ़ती गई चि‍टठी का रि‍श्‍ता रह गया, सब गए परदेश घर में बाप तन्‍हा रह गया.....और वो ही हमें तन्‍हा छोड़ कर चले गए....गजलों के द्वारा एक सान्‍तावना देकर....हमारे दि‍लों में बसकर..लाखों-करोड़ों के चहेते बनकर...आइए हम उन्‍हें रोज की तरह फि‍र एक बार याद करें...

''हाथ छूटे भी तो रि‍श्‍ते नहीं छूटा करते
वक्‍त की शाख से लम्‍हें नहीं तोड़ा करते''

5 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

विनम्र श्रद्धांजलि।

अरुन अनन्त said...

आदरणीय जगजीत साहब को मेरा प्रणाम और विनम्र श्रधांजलि

Rajesh Kumari said...

मेरे भी पसंदीदा ग़ज़ल कार थे जगजीत सिंह जी उनको विनम्र श्रद्धांजली

सदा said...

विनम्र श्रद्धांजलि।

Akash Mishra said...

जगजीत जी की ही एक गजल है-
'दर्द से मेरा दामन भर दे , या अल्लाह ,
फिर चाहे दीवाना कर दे , या अल्लाह |'
उनकी हर गजल सुनने से पहले मेरी यही ख्वाहिश होती है |
विनम्र श्रद्धांजलि , आँख आज भी नाम है |

सादर