रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Monday, May 10, 2010
क्या था सच
अहसास बेमानी थे या शब्द पता नहीं, किन भावों को पिरोकर शब्दों का मोती बनाया था, आज पलटती हूं गुजरा लम्हा तो लगता है वो शब्द, वो खत जिनमें सिर्फ अहसास समाए हैं, क्या वो सच था या सिर्फ कल्पनाएं हैं।
भूतकाल तो भूत के सामान होता है.... भविष्यकाल कल्पनाओं पर टिका होता है......वर्तमान ही सच होता है ... अब कविता पुनः पढ़कर तय होगा की की वो कल्पना थी या सच......
11 comments:
अहसासों को कसौटी पर परखती प्रशंसनीय रचना
लगा जैसे एक ही सांस में पूरी रचना आपने सुना दी। मैं बहुत खूब लिखकर आपकी तारीफ करता हूं। वाकई अच्छी रचना।
bahut khoob...
aapki kavitao mai sach hi hai, ek ashia sach jo samaj ke liyai hai.
ek acchha ahsas.
bahut acchhi rachna
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
सच में कभी कभी अतीत के पन्ने पलटने पर ये महसूस होता है
बहुत कोमलता से लिखे हैं एहसास.....सुन्दर अभिव्यक्ति
आपके अहसासों ने मन को छू लिया।
हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
अति उत्तम
भूतकाल तो भूत के सामान होता है.... भविष्यकाल कल्पनाओं पर टिका होता है......वर्तमान ही सच होता है ... अब कविता पुनः पढ़कर तय होगा की की वो कल्पना थी या सच......
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