बेचैन मन अतीत की ओर भागता है, और उस पर भी अपना बचपन।
खुद से बड़ों को देखकर हम भी सूट पहनने को मचल उठे। कपड़ा खरीद कर पहला सलवार - कमीज सिलवाया गया हमारे लिए। तब फेसबुक जैसी कोई चीज तो न थी, मगर फोटो खींचने और खिंचवाने का बड़ा शौक था, इसलिए यह फोटो एलबम में दिख गया। रील वाले कैमरे के कारण सभी फोटो धूप में खींची जाती थी, और आंखें....
बेशक रंग और कपड़ा पापा ने पसंद किया था... शादी के बाद भी इसी रंग की साड़ी खरीद कर दी थी मेरे जन्मदिन पर, जिस पर मां खासा नाराज हुई थी कि अब तो इस रंग से बाहर आ जाइए.....। सूट तो नहीं, साड़ी सहेजकर रखा है।
5 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.8.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4518 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
धन्यवाद
कुछ यादें जिन्हें हम यूँ ही सहेज लेते हैं, ऐसे ही यादगार बनकर हमारे सामने आती है तो मन को एक अलग ही ख़ुशी मिलती हैं।
रक्षाबंधन पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाएं!
सुंदर याद। सूट का रंग भी अच्छा है।
सुंदर प्रस्तुति
बहुत खूब! बचपन के हमारे कुछ चित्र हमें पुनः उस निर्मल माधुर्य से सराबोर कर देते हैं।
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