Wednesday, July 8, 2020

कुछ भी तो नहीं...



इन दिनों बार-बार महसूस होता है कि केवल फ़ोटो खींचने और अपनी फ़ोटो खिंचवाने के सिवाय और क्या कर रही हूँ?

कुछ भी तो नहीं...

मन में विचार ऐसे ही बादलों की तरह चले आते हैं और देखते ही देखते तिरोहित हो जाते हैं। ना बादलों के हिसाब से सावन बरस रहा है न मन में कुछ ठहर रहा है।कविता तो जाने जब से रूठी है मुझसे। निपट सूनापन है ...दिल तक कोई बात पहुँचती ही नहीं इन दिनों....।

8 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

जब शरीर ही नश्वर है तो समय भी कब तक रहेगा इस तरह ये भी चले जायेगा नया समय आयेगा।

कविता रावत said...

पढ़कर लगा जैसे मुंह की बात आंखों के सामने आई है
समय समय की बात होती है कभी वसंत कभी पतझड़ आता जाता है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर।

Onkar said...

सही कहा

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(११-०७-२०२०) को 'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- ३५६९) पर भी होगी।

आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

कभी कभी कुछ न करना भी अच्छा होता है। यह एक दौर हैजैसे अभी विचार आ जा रहे हैं वैसे ही यह दौर भी आकर चला जायेगा।

Rakesh said...

सत्य कथन🙏🙏

मन की वीणा said...

सही!! सही कहा आपने बहुत बार ऐसा होता है हर रचनाकार के साथ पर सब कुछ धीरे-धीरे सहज हो जाता है , कवि की कलम का रुकना बस एक ठहराव है,वो फिर चल पड़ती है।
शुभकामनाएं जल्दी ही लेखनी अपनी सहज गति में आजाए।