इन दिनों बार-बार महसूस होता है कि केवल फ़ोटो खींचने और अपनी फ़ोटो खिंचवाने के सिवाय और क्या कर रही हूँ?
कुछ भी तो नहीं...
मन में विचार ऐसे ही बादलों की तरह चले आते हैं और देखते ही देखते तिरोहित हो जाते हैं। ना बादलों के हिसाब से सावन बरस रहा है न मन में कुछ ठहर रहा है।कविता तो जाने जब से रूठी है मुझसे। निपट सूनापन है ...दिल तक कोई बात पहुँचती ही नहीं इन दिनों....।
जब शरीर ही नश्वर है तो समय भी कब तक रहेगा इस तरह ये भी चले जायेगा नया समय आयेगा।
ReplyDeleteपढ़कर लगा जैसे मुंह की बात आंखों के सामने आई है
ReplyDeleteसमय समय की बात होती है कभी वसंत कभी पतझड़ आता जाता है
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसही कहा
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(११-०७-२०२०) को 'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- ३५६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
कभी कभी कुछ न करना भी अच्छा होता है। यह एक दौर हैजैसे अभी विचार आ जा रहे हैं वैसे ही यह दौर भी आकर चला जायेगा।
ReplyDeleteसत्य कथन🙏🙏
ReplyDeleteसही!! सही कहा आपने बहुत बार ऐसा होता है हर रचनाकार के साथ पर सब कुछ धीरे-धीरे सहज हो जाता है , कवि की कलम का रुकना बस एक ठहराव है,वो फिर चल पड़ती है।
ReplyDeleteशुभकामनाएं जल्दी ही लेखनी अपनी सहज गति में आजाए।