Wednesday, April 29, 2020

गोधूली बेला.....


1.
आकाश धुँधलाया
गौ के खुरों से उड़ रही धूल
टिटकारी सुन
सीध में आ गई बकरियाँ
चट-चट कर लहकने लगा
सब घरों का चूल्हा
2.
स्मृतियों में बसी होती है
गोधूली बेला
और
गोधूली बेला में
स्मृतियों के सिवा कुछ नहीं बचता....।

6 comments:

nilesh mathur said...

बहुत सुंदर।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.4.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3687 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

Onkar said...

सुन्दर रचना

Marmagya - know the inner self said...

सुन्दर विम्बों से गोधूलि बेला को स्मृतियों में बसाती बेहतरीन प्रस्तुति !
--ब्रजेन्द्र नाथ

अनीता सैनी said...

बहुत ही सुंदर सृजन
सादर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर क्षणिकाएँ