Sunday, June 2, 2019

“फिर....?”




“इतने सालों में कभी याद नहीं आयी?”
“हर रोज़”
“मिलने का सोचा एक बार भी ?”
“हज़ारों बार”
“फिर....?”
“ फिर ......कैसे आता तुम तक?
निरंतर भटकाव और उदासी...इसका अपना ही मज़ा है ...” फीकी मुस्कान थी होठों पर।

टहनियों में उलझी शाम थोड़ी और गहरी हो गई। 

1 comment:

M VERMA said...

उफ ....
कश्मकश

अति उत्तम