पल्लव नया....
मन के अरण्य में
स्मृतियों की बंजर हथेली पर
सूखे- झरे पात हैं
एक-एक कर
चुन लूँ
बिखरी यादों को
इस उदास मौसम में
पतझड़ के आख़री पत्ते की तरह
और गुनगुनाती धूप में
धीमे-धीमे
दुख से बाहर आने का
कोई रास्ता देखूँ
कि सुना है
वसंत की ऊँगलियों में
जादू है
वो खिलाएगा पल्लव नया
उगेगा सरसों पीला
कि फिर वसंत आ रहा ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteमन की अरण्य के सूखे पात और बसंत के जादू की कल्पना, अत्यंत ही मोहक रूप दे गई रचना
ReplyDeleteको आदरणीया रश्मि जी। बहुत-बहुत शुभकामनायें ।
आप कृपया कमेन्ट को moderation से अलग करे ताकि भविष्य में भी आपके ब्लाग पर आ सकूँ ।
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