साथ छूट रहा ...हाथ छूट रहा ...’है’ से ‘था’ की ओर सफ़र कर रहा हमारा रिश्ता। कभी नहीं चाहा था ऐसा हो, मगर होनी पर किसका वश है?
तुम्हारी आवाज़ गूँजती है इर्द-गिर्द..... कहीं से भी चलकर कोई बात आती है और लगता है, तुम बोल रहे हो मेरे आसपास कहीं। कितना अजीब है न यह कि कोई पंक्ति ..कोई बात या कोई मुहावरा जो तुम कभी बोल चुके हो...वो अब मेरे सामने आता है तो तुम्हारी आवाज़ बनकर...शब्द बड़े पहचाने से लगते हैं और स्वर तो जैसे तुम्हारे अलावा कोई बोल ही नहीं सकता .....
बिछड़कर भी न बिछड़ना इसे ही तो कहते हैं। कहाँ रहती हूँ मैं तुम्हारे बिना एक पल भी? ये अलग बात है कि हम साथ नहीं मगर मेरी रूह तो जैसे तुम्हारी जुड़वाँ हो गयी है।
तुमने कहा था जब तक रहूँ..कुछ बातें वैसे ही करना जैसे किया करते हो...हथेली में फिर लिखा तुम्हारा नाम...उसी नरमाई से कहा तुमसे वो सब ..जो कहा करती थी बीते कई सालों से तुमसे। रात बारिश भी हुई बहुत तेज...मैं जूझती रही खुद से। कितना कठिन होता है बिना कहे कुछ कहना। जाने तुम तक अब आवाज़ पहुँचती भी है या नहीं ...
जानते हो तुम.. मैं कुछ नहीं भूलती....ईश्वर के आगे फिर सर झुका मेरा...अपनी प्रार्थना उन तक पहुँचा दी।
साथ रहो या मेरे बिना रहो...बस ख़ुश रहना...यही दुआ करती हूँ।
इस मौसम में आज कोयल पहली बार कूकी...अतीत के पन्ने अपनेआप पलट आए जैसे...तुम सुन रहे हो न ....
आप सभी को होली की शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteसमूचा वर्ष हर्ष-उल्लास से बीते और आप उतरोत्तर प्रगति प्राप्त करेंगे। इसी आशा के साथ
-मनोहर चमोली मनु
सिर्फ किसी की यादोँ के संग जीना, बेहद ही कठिन होता है। मार्मिक ढंग से लिखा है आपने संस्मरणों को। शुभकामनाएं ।
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