Wednesday, January 9, 2019

यादों से रि‍श्‍ता ....


बिछड़ने की बात पर 
दो बूँद आँखों से 
बेआवाज़ गिर जाना 
अब न चुभता है 
ना पूछना चाहता है दिल कि 
अबकी बरस
बिछड़ जाओगे तो
कैसे जी पाएँगे ...?
उलझा लोगे ख़ुद को
तमाम उलझनों में
कि सुबह से रात तक
दम न लेने पाओ
मगर किसी शब के सन्नाटे में
चाँद के रूबरू होगे
तो देखना
याद में कैसे तड़प जाओगे !
हर मौसम की तासीर को
भुलाना भी चाहो,
सर्दियों की शाम
जनवरी की किसी उदास दिन में
हवा सिहरा जाएगी बदन
तुम्हारी हथेलियाँ
तलाशेगी उँगलियों की गिरफ़्त
तब ख़ुद को
किस क़दर तनहा पाओगे!
याद रखो
बिछड़ तो जाओगे हमसे
मेरी यादों से कैसे रिश्ता तोड़ पाओगे?

6 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.1.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3318 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Kailash Sharma said...

बहुत प्रभावी और भावपूर्ण रचना...

Rohitas Ghorela said...

यादों का स्वभाव शायद अजर है अमर नहीं।

बहुत खूब

Anuradha chauhan said...

बहुत सुंदर रचना

रश्मि शर्मा said...

धन्यवाद

रश्मि शर्मा said...

धन्यवाद