डरती हूँ
तुमसे नहीं
न उस प्यार से, जो
फूलों की तरह बरसा रहे तुम
और मैं भीग रही
सुबह की ओस में गुलाब की तरह
डरती हूँ
इस साथ से
दिन-रात की बात से
जो हो नहीं पाई उस मुलाक़ात से
कि आदतें जीने नहीं देती पहले की तरह
इस साथ से
दिन-रात की बात से
जो हो नहीं पाई उस मुलाक़ात से
कि आदतें जीने नहीं देती पहले की तरह
डरती हूँ
अंतहीन इंतज़ार के ख़्याल से
कि एक दिन कहकर भी
जो नहीं आओगे
मैं राह तकती, जागती रहूँगी रात की तरह
और तुम भूलकर मुझे
बढ़ जाओगे आगे, बीती बात की तरह।
अंतहीन इंतज़ार के ख़्याल से
कि एक दिन कहकर भी
जो नहीं आओगे
मैं राह तकती, जागती रहूँगी रात की तरह
और तुम भूलकर मुझे
बढ़ जाओगे आगे, बीती बात की तरह।
2 comments:
डरना तो व्यर्थ का है
प्यार करने वाले जाते नहीं हैं.
बहुत भावपूर्ण।
काम्बोज
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