Wednesday, May 23, 2018

लद्दाख :- दि‍स्‍कि‍त मठ





 हम एक बार फि‍र दि‍स्‍कि‍त मठ की आेर थे। आज कि‍स्‍मत अच्‍छी थी। दलाई लामा थे वहाँ पर आज नीचे उनका सम्‍मेलन था। मठ तक गाड़ी चली गई। मठ दूर से ही बहुत खूबसूरत लग रहा था। मठ समुद्रतल से 10,310 फीट की ऊँचाई पर स्‍थि‍त है। दि‍सकि‍त बौद्ध मठ नुब्रा घाटी में सबसे पुराना और सबसे बड़ा मठ है। इसकी स्‍थापना चोंगजेम़ सि‍रेब झांगपो ने इसे 14वीं शताब्‍दी में की थी। यह  गोम्‍फा ति‍ब्‍बती बौद्ध धर्म के गेलुप्‍पा पीली टोपी वाले संप्रदाय के अंर्तगत आता है। यह मठ ति‍ब्‍बती बच्‍चों के लि‍ए एक स्‍कूल भी चलाता है।यहाँ मैत्री बुद्ध की इतनी ऊँची मूर्ति है कि‍ खड़े होने पर भी हम उनके पैरों तक नही पहुँच पाए। दलाई लामा ने 100 फूट के ' मैत्रेयप्रति‍मा का उद्घाटन कि‍या था। दि‍स्‍कि‍त गोम्‍पा में वर्ष में एक बार तुसछोत के नाम से वार्षिक मेला आयोजि‍त होता है। उस मौके पर मठ में नि‍वास कर रहे लामा  बुद्ध और बोधि‍सत्‍वों के मुखौटे पहन कर धार्मिक नृत्‍य करते हैं,जि‍से छमस कहते हैं। 







 यहाँ ऊपर से पूरी नुब्रा घाटी नजर आती है ..सुंदर..नयनाभि‍राम। हमने बहुत सी तस्‍वीरें उतारी। अब हम मंदि‍र में थे । वहाँ बुद्ध शाक्‍य मुनि‍ की प्रति‍मा थी। गुरू पद्मनाभम के साथ ही अन्‍य भी। तभी हमने मूर्ति की फोटो ली। यहाँ एक पुजारी बैठे थे। उन्‍होंने मना नहीं कि‍या। मगर जब मेरी तस्‍वीर मूर्ति के साथ ली गई और साथ में पुजारी भी उसी फ्रेम में आ रहे थे। उन्‍होंने अपनी आंखे बंद कर ली। जब तस्‍वीर क्‍लि‍क हो गई तो कहने लगे कि‍ ये आपने अच्‍छा नहीं कि‍या। अब आपके साथ जरूर कुछ बुरा होगा। हमने बोला - ये क्‍या बात हुई। जब तस्‍वीर नहीं उतारनी थी तो क्‍लि‍क करने से पहले ही मना करते। 



अब उसके बाद वो बार-बार कहने लगे कि‍ जरूर कुछ न कुछ बुरा हाेगा। आगे क्‍या बुरा होना है, यह तो पता नहीं मगर उस वक्‍त हमें जरूर बुरा लगा और हम बाहर नि‍कल आए। मन खराब हो गया। यह सच है कि‍ कि‍सी से कुछ बोलने से नहीं होता मगर कई बार वह बातें आपके मन में बैठ जाती हैं। मैंने वो तस्‍वीरें डि‍लीट की और गाड़ी में बैठकर नि‍कल गए। हमलोग इस बात का ध्‍यान रखते हैं कि‍ जहाँ मना कि‍या जाए वो काम नहीं करे। खैर...जो होगा देखा जाएगा कि‍ भावना के साथ फि‍र वापस चल पड़े। 




नि‍हायत खूबसूरत रास्‍ता। कुछ दूर चलने के बाद हमारे ड्राइवर की वि‍परीत दि‍शा से आने वाले ड्राइवर से बात हुई। उनकी भाषा तो हमें समझ नहीं आई मगर जि‍म्‍मी ने बताया कि‍ रास्‍ते में एक पुल बह गया है। वहाँ घंटों जाम लगेगा इसलि‍ए दूसरे रास्‍ते से चलते हैं। वह रास्‍ता आर्मी वालों के काम आता था। सामान्‍य लोगों के लि‍ए नीचे का रास्‍ता था जो पुल बहने के कारण अवरूद्ध हो चुका था। अब हम काफी ऊँचाई पर थे। नीचे दूसरी सड़क दि‍ख रही थी जि‍ससे होकर हमें जाना था। दूर तक बालू में पर्यटक छोटी सी चारपहि‍ए की गाड़ी में रेत का आनंद उठा रहे थे। 


हम आर्मी कैंप के पास से होकर नि‍कल रहे थे। आश्‍चर्य होता है कि‍ इतनी दूरइतनी कठि‍न जगह पर कैसे रहते हैं आर्मी वाले। हम जि‍स जगह रूके वहाँ बोर्ड लगा था सि‍याचि‍न ब्रि‍ज। नीचे दि‍ख रहा था कि‍ पहाड़ी नदी से पूरा पुल बह गया है। ऊपर हम सि‍चाचि‍न तुुस्‍कर क्षेत्र में थे। अपने ड्राइवर की सावधानी की वजह से हम नि‍कल पाए वरना फि‍र उस टूटे पूल से वापस जाकर ऊपर के उसी रास्‍ते से वापस आना होता जि‍ससे अभी आए हैं। ये लंबा रास्‍ता था मगर हमें रुकना नहीं पड़ा। 



क्रमश:...8 

5 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 24 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1042 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।



दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.05.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2980 में दिया जाएगा

धन्यवाद

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 23 मई - विश्व कछुआ दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Meena sharma said...

खूबसूरत यात्रा संस्मरण । पूरा पढ़ने की उत्सुकता बनी हुई है।

अभिषेक शुक्ल said...

सैर कर दुनिया की गाफिल नौजवानी फिर कहां, नौजवानी गर अगर है जिंदगानी फिर कहा. किसी ने सही ही कहा है. बेहद खूबसूरत संस्मरण. अच्छी जानकारी.