Friday, March 16, 2018

असली दुःख....


तुम दुःखी हो !
नहीं लगता मुझे बिल्कुल ऐसा
ईश्वर का दिया सब है
पास तुम्हारे
तुमने जो अर्जित किया 
उसका भी सुख भोग रहे हो
दुःख क्या होता है
दरअसल तुमने जाना नहीं
देखो अपने आसपास किसी
तन-धन से लाचार वृद्ध को
और महसूस करो दर्द उसका
ऐसी पीड़ा जो तन से अधिक
मन को व्यथित करे
और उसे प्रकट करने के
अधिकार से वंचित हो जाओ
तब दुःख की गहराई का
भान होगा तुम्हें
मगर, ये भी जान लो
मन के भार सह भी लोगे
तन जब भार बन जाए
हाड़-माँस का पुतला बन
पड़ जाओगे बिस्तर पर
इससे आगे सब दुःख छोटे लगेंगे
देखोगे तुम अपनों की
उपेक्षा भरी दृष्टि
पाओगे कि बाँहों में लिए घूमते थे जिनको
उनके पास
दो घड़ी का समय नहीं तुम्हारे लिए
जब मनचाहा खाना चाहोगे
सकुचाते हुए कहोगे किसी दिन
अपनी ख़्वाहिश, और बदले में
झिड़कियाँ सुनोगे
चटोरी जीभ के लिए
तब सचमुच अपनी स्वाद ग्रंथियों को
ओछा ठहराओगे
जीवन भर
पूरी ठसक के साथ जिए
जानते हुए कि तिरस्कार मिलेगा
परंतु कहोगे
अपनी छोटी सी इच्छा, औरों के आगे
इस उम्मीद में
कि सामने सबके बात रख ली जाएगी
फिर ख़ुद ही सहमी आँखो से देखोगे
कि कहीं दुत्कार ना दे
तुम्हारी अपनी ही संतान
पोसा है जीवन भर
चेहरे के भाव से ही समझ जाओगे
कि क्या सुनना है अब
फेर लोगे तुरंत निगाहें दूसरी ओर
चुपके से
पोंछोगे छलके आँसू, छुपाओगे ख़ुद से
नाटक करोगे हँसने का
और जो दुःख का सागर सीने में
उमड़ेगा तब समझोगे
कि असली दुःख क्या होता है।

11 comments:

Anita said...

कटु सत्य, वृद्धावस्था के अभिशाप को झेलते कितने ही मानवों की कहानी..युवावस्था यह देख नहीं पाती.

'एकलव्य' said...

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

निमंत्रण

विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

NITU THAKUR said...

बहुत सुंदर

Sudha Devrani said...

असली दुख .....वाकई ऐसा क्षण बहुत दर्दनाक होगा.....
बहुत सुन्दर....

Sudha Devrani said...

असली दुख .....वाकई ऐसा क्षण बहुत दर्दनाक होगा.....
बहुत सुन्दर....

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

कटु सत्य !!

दिगम्बर नासवा said...

कड़वे सच से साक्षात्कार करवाती रचना ..
भूत उमदा ...

पल्लवी गोयल said...

मार्मिक पर कड़वा सच । लाजवाब !!

देशवाली said...

बूढ़ा इंतज़ार
उस टीन के छप्पर मैं
पथराई सी दो बूढी आंखें

एकटक नजरें सामने
दरवाजे को देख रही थी

चेहरे की चमक बता रही है
शायद यादों मैं खोई है

एक छोटा बिस्तर कोने में
सलीके से सजाया था

रहा नहीं गया पूछ ही लिया
अम्मा कहाँ खोई हो

थरथराते होटों से निकला
आज शायद मेरा गुल्लू आएगा

कई साल पहले कमाने गया था
बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा

आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
जो उन बूढ़े होंठों से निकले।

रश्मि शर्मा said...

बहुत ही अच्छी कविता है यह। साधु।