तुम दुःखी हो !
नहीं लगता मुझे बिल्कुल ऐसा
ईश्वर का दिया सब है
पास तुम्हारे
तुमने जो अर्जित किया
उसका भी सुख भोग रहे हो
नहीं लगता मुझे बिल्कुल ऐसा
ईश्वर का दिया सब है
पास तुम्हारे
तुमने जो अर्जित किया
उसका भी सुख भोग रहे हो
दुःख क्या होता है
दरअसल तुमने जाना नहीं
देखो अपने आसपास किसी
तन-धन से लाचार वृद्ध को
और महसूस करो दर्द उसका
दरअसल तुमने जाना नहीं
देखो अपने आसपास किसी
तन-धन से लाचार वृद्ध को
और महसूस करो दर्द उसका
ऐसी पीड़ा जो तन से अधिक
मन को व्यथित करे
और उसे प्रकट करने के
अधिकार से वंचित हो जाओ
तब दुःख की गहराई का
भान होगा तुम्हें
मन को व्यथित करे
और उसे प्रकट करने के
अधिकार से वंचित हो जाओ
तब दुःख की गहराई का
भान होगा तुम्हें
मगर, ये भी जान लो
मन के भार सह भी लोगे
तन जब भार बन जाए
हाड़-माँस का पुतला बन
पड़ जाओगे बिस्तर पर
इससे आगे सब दुःख छोटे लगेंगे
मन के भार सह भी लोगे
तन जब भार बन जाए
हाड़-माँस का पुतला बन
पड़ जाओगे बिस्तर पर
इससे आगे सब दुःख छोटे लगेंगे
देखोगे तुम अपनों की
उपेक्षा भरी दृष्टि
पाओगे कि बाँहों में लिए घूमते थे जिनको
उनके पास
दो घड़ी का समय नहीं तुम्हारे लिए
उपेक्षा भरी दृष्टि
पाओगे कि बाँहों में लिए घूमते थे जिनको
उनके पास
दो घड़ी का समय नहीं तुम्हारे लिए
जब मनचाहा खाना चाहोगे
सकुचाते हुए कहोगे किसी दिन
अपनी ख़्वाहिश, और बदले में
झिड़कियाँ सुनोगे
चटोरी जीभ के लिए
तब सचमुच अपनी स्वाद ग्रंथियों को
ओछा ठहराओगे
सकुचाते हुए कहोगे किसी दिन
अपनी ख़्वाहिश, और बदले में
झिड़कियाँ सुनोगे
चटोरी जीभ के लिए
तब सचमुच अपनी स्वाद ग्रंथियों को
ओछा ठहराओगे
जीवन भर
पूरी ठसक के साथ जिए
जानते हुए कि तिरस्कार मिलेगा
परंतु कहोगे
अपनी छोटी सी इच्छा, औरों के आगे
इस उम्मीद में
कि सामने सबके बात रख ली जाएगी
पूरी ठसक के साथ जिए
जानते हुए कि तिरस्कार मिलेगा
परंतु कहोगे
अपनी छोटी सी इच्छा, औरों के आगे
इस उम्मीद में
कि सामने सबके बात रख ली जाएगी
फिर ख़ुद ही सहमी आँखो से देखोगे
कि कहीं दुत्कार ना दे
तुम्हारी अपनी ही संतान
पोसा है जीवन भर
चेहरे के भाव से ही समझ जाओगे
कि क्या सुनना है अब
कि कहीं दुत्कार ना दे
तुम्हारी अपनी ही संतान
पोसा है जीवन भर
चेहरे के भाव से ही समझ जाओगे
कि क्या सुनना है अब
फेर लोगे तुरंत निगाहें दूसरी ओर
चुपके से
पोंछोगे छलके आँसू, छुपाओगे ख़ुद से
नाटक करोगे हँसने का
और जो दुःख का सागर सीने में
उमड़ेगा तब समझोगे
कि असली दुःख क्या होता है।
चुपके से
पोंछोगे छलके आँसू, छुपाओगे ख़ुद से
नाटक करोगे हँसने का
और जो दुःख का सागर सीने में
उमड़ेगा तब समझोगे
कि असली दुःख क्या होता है।
कटु सत्य, वृद्धावस्था के अभिशाप को झेलते कितने ही मानवों की कहानी..युवावस्था यह देख नहीं पाती.
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअसली दुख .....वाकई ऐसा क्षण बहुत दर्दनाक होगा.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
असली दुख .....वाकई ऐसा क्षण बहुत दर्दनाक होगा.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
कटु सत्य !!
ReplyDeleteकड़वे सच से साक्षात्कार करवाती रचना ..
ReplyDeleteभूत उमदा ...
मार्मिक पर कड़वा सच । लाजवाब !!
ReplyDeleteबूढ़ा इंतज़ार
ReplyDeleteउस टीन के छप्पर मैं
पथराई सी दो बूढी आंखें
एकटक नजरें सामने
दरवाजे को देख रही थी
चेहरे की चमक बता रही है
शायद यादों मैं खोई है
एक छोटा बिस्तर कोने में
सलीके से सजाया था
रहा नहीं गया पूछ ही लिया
अम्मा कहाँ खोई हो
थरथराते होटों से निकला
आज शायद मेरा गुल्लू आएगा
कई साल पहले कमाने गया था
बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा
आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
जो उन बूढ़े होंठों से निकले।
बहुत ही अच्छी कविता है यह। साधु।
Delete