Wednesday, January 31, 2018

माघी पूर्णिमा का चंद्रग्रहण.....






देखा मैंने 
चाँद को बढ़ते, घटते
फिर बढ़ते
तिल-तिल कर 
आधा चाँद जब छुपा था 
धरती के साये में
तब भी लगा था ख़ूबसूरत
और जब लाल होते हुए
ग़ायब हुआ
नहीं लगा एक बार भी
लगा है कोई ग्रहण
छुपते-छुपते निकल ही आया
माघी पूर्णिमा का
दूधिया चाँद

8 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १९५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बजट, बेचैन आत्मा और १९५० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Parmeshwari Choudhary said...

और नीला चाँद ... सुन्दर लिखा है आपने

Onkar said...

सुन्दर रचना

'एकलव्य' said...

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

Meena Bhardwaj said...

बहुत‎ सुन्दर‎.

रेणु said...

आदरणीय रश्मि जी बहुत प्यारी रचना -- अपना नजरिया , अपनी दृष्टि -- मुझे बहुत अच्छी लगी सस्नेह --

शुभा said...

वाह!!सुंंदर।

Jyoti khare said...

वाह
बहुत सुंदर सृजन
सादर