शाम उतर गयी पेड़ों के पीछे। मन भी धुँधलाया सा है जैसे कम रोशनी में आँखों को थोड़ी तकलीफ़ होती है स्पष्ट देखने के लिए।
मैं भी समझ नहीं पायी हूँ कुछ रिश्तों का ताना-बाना। बार-बार कुछ जुड़ता है...टूटता है। आस भी बड़ी अजीब चीज़ होती है ..ज़िद्दी...टूट के फिर जुड़ जाती है एक बार और टूटने के लिए।
मैं भी समझ नहीं पायी हूँ कुछ रिश्तों का ताना-बाना। बार-बार कुछ जुड़ता है...टूटता है। आस भी बड़ी अजीब चीज़ होती है ..ज़िद्दी...टूट के फिर जुड़ जाती है एक बार और टूटने के लिए।
वही शाम है, दिन नया पर बात वही। तोड़ दो....दिल वही है जज़्बात भी वही ।
एक सा कोई दिन कहाँ रहता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सुन्दर
ReplyDeleteअहसासों की बात!! उम्दा!
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गए ये कुछ शब्द
ReplyDeleteवही शाम है, दिन नया पर बात वही। तोड़ दो....दिल वही है जज़्बात भी वही ।
वाह।।।।
सादर रश्मि जी शुभकामना।
apki bate dil ko chhoo gayi....uttam
ReplyDeleteटूट जाने के बाद भी फिर जुड़ जाएगा ... एक सा हमेशा सब कहाँ रहता है ...
ReplyDeleteशाम भी तो नहीं रहती बदल जाती है रात में ...