Saturday, June 24, 2017

न नि‍काले कोई....


"ये ज़हर मेरे लहू में उतर गया कैसे".....रात भर गूंजती रही कमरे में मेहदी हसन की दर्द भरी आवाज.....
ऐसा ही होता है जब प्रेम और प्रेम से उपजा दर्द तराज़ू के दो पलड़ों में बराबर तुलता है। वक़्त ठहरा होता है। साल की सबसे छोटी रात सबसे लंबी कब हो जाती है .....यह दर्द के लहरों पर सवार उस प्रेमी से पूछिये जिसके हिस्से केवल फ़रेब आया हो।
मगर जब कोई खुद को किसी गहरी आवाज के साये में दर्द भरे शब्दों के बीच छोड़ देता है ....तो यह मान लेना चहिये कि अब दर्द पीना आ गया उसे। न देता हो तो न दे कोई हाथ....न निकाले कोई उसे फिर से छोड़ जाने को।
कितना मज़ा है ग़म में कि मदिरा की घूँट पहली बार हलक से उतरे ....आह....जलन का अपना मज़ा है।
ओ जालिम....तुम्हें नहीं पता....खुद को खुद ही सँभालने से अच्छी कोई शै नहीं होती इस दुनियां में .....जाओ कि दर्द से उफ़ नहीं करता कोई.... फिर गूंजने लगी वो ही आवाज..... मैं होश में था.....


3 comments:

Dr.Dayaram Aalok said...

uttam lekhan

Satish Saxena said...

बहुत खूब ,
हिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Satish Saxena said...

बहुत खूब ,
हिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग