Friday, May 5, 2017

मन का परि‍ंदा



जो तुम्‍हारे गम में 
शामि‍ल नहीं
उसे खुशि‍यों से भी 
बेदख़ल कर दि‍या करो
जी लि‍या बहुत
सबका एहतराम करके
मन के परि‍ंदे को
खुले आस्‍मां में छोड़ दि‍या करो

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

अगर मन की ये सच्ची चाहत तो ऐसा ही करना चाहिए ...
भावपूर्ण लिखा है ...