अज़ब सा है जादू,जो मुझपे है छाया
तुम्हे सोच के दिल मेरा मुस्कराया
मेरे अश्क कहते हैं मेरी कहानी
के संगदिल सनम को निभाना न आया
खिलौना समझके मेरे दिल से खेला
भरा जी जो उसका मुझे छोड़ आया
के फ़ितरत में उसकी वफ़ा ही नही थी
तभी साथ उसने न मेरा निभाया
फिरा हर गली में,वो बनके दीवाना
हुआ क्या है रश्मि,समझ में न आया
9 comments:
शुभ प्रभात
वाह..बेहतरीन
हुआ क्या है रश्मि,
समझ में आया नहीं
कि..क्यों
फिरा वो हर गली में,
वो बनके दीवाना
.....
तोड़-फोड़ के लिए क्षमा
सादर
बहुत ही सुन्दर और प्यारी पंक्तियाँ | उम्दा ..पढ़ते रहेंगे आपको
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 19 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व दूरसंचार दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सुन्दर! रचना
बेहतरीन
बहुत सुन्दर.....
"फिरा हर गली में,वो बनके दीवाना
हुआ क्या है रश्मि,समझ में न आया"....
प्रेम में ऐसा भाव नहीं होता कि बेवफ़ा को तकलीफ़ों का उपहार मिले या उपहास का पात्र बने बल्कि उसमें बोने होते हैं ऐसे बीज जो आशाओं के पौधे बनकर अंकुरित हों और उसे एहसास करायें कि बेवफ़ाई की बेल सूख जाती है चाहे जितना छल से उसे सींचा जाय। प्रेम एक मूल्य है जिसका खरापन और खनक अपनी श्रेष्ठता बनाये हुए है लेकिन प्रेमी पात्र उसे कितना आत्मसात कर पाते हैं यह तो ज़माने का दस्तूर है।
दिल के एहसासों से गुज़रती मार्मिक रचना। बधाई !
सुन्दर।
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