अप्रैल 2017 देश में अत्यधिक गर्मी के कारण चर्चित रहा, मगर इससे कहीं ज्यादा चर्चा रही सुप्रीम कोर्ट के आदेश की, कि राष्ट्रीय राजमार्ग और स्टेट हाईवे से 500 मीटर दूर तक नहीं होगी शराब की दुकान। जाहिर है इस आदेश से देश में हडकंप है। कुछ लोग विरोध में हैं तो कुछ समर्थन में। अनुमान है कि इससे करीब 50 हजार करोड़ का नुकसान होगा राज्यों को। होटल इंडस्ट्री को दस-पंद्रह हजार करोड़ का झटका लगेगा तो उधर करीब दस लाख लोगों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है।
अभी फायदे और नुकसान का आकलन किया जा रहा है। मगर इन सबसे परे हम अपना ध्यान थोड़ी देर के लिए केंद्रित करते हैं बिहार की तरफ जहां पिछले वर्ष 2016 में नीतीश सरकार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा और तमाम विरोध के बाद भी यह बंदी लागू है और नीतीश सरकार के इस कदम की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। इससे पहले केरल को शराबबंदी में सफलता मिली। वहां केवल पांचसितारा होटलों में शराब परोसी जाती है। कई राज्यों ने ऐसा करना चाहा मगर सफल नहीं हुए।
यहां एक बात यह भी उल्लेखनीय है कि बिहार में शराबबंदी के पीछे मुख्य रूप से महिलाओं की मांग थी। 9 जुलाई 2015 को पटना की एक सभा में जीविका से जुड़ी महिलाओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सार्वजनिक रूप से यह मांग की थी कि राज्य में शराबबंदी लागू की जाए। मुख्यमंत्री ने उसी मंच से महिलाओं को आश्वासन दिया था कि अगले चुनाव में जनादेश मिला तो अवश्य शराबबंदी लागू करेंगे। नीतीश चुनाव जीते और अपना वादा पूरा किया। एक अप्रैल 2016 से इसे लागू करने का फैसला लिया और कड़ा रूख अपनाते हुए राज्य में शराबबंदी कर दी। इधर 1 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने बंदिश लगाने का आदेश दिया है, जिससे सब तरफ अफरातफरी का माहौल है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला इस आधार पर लिया कि शराब पीकर वाहन चलाने से अत्यधिक सड़क हादसे होते हैं। दरअसल भारत में सड़क हादसे के कारण सबसे ज्यादा जानें जाती है पूरी दुनिया में। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि राजर्माग के किनारे शराब नहीं बिकेगा तो हादसों में कमी आएगी।
अब हम आते हैं महिलाओं की मांग के बारे में। आप सभी को याद होगा कि गाहे-ब-गाहे यह खबर आती थी कि अमुक गांव की महिलाओं ने मिलकर शराब की भट्ठी तोड़ डाली। देसी शराब के ठेके उजाड़ दिए और लाठी-डंडे से विरोध करने वालों को पीटा। यह कोई नई खबर नहीं। बहुत सालों से विरोध होता आया है। इस सब विरोध के पीछे महिलाओं का अपना दर्द है। ज्यादतर महिलाओं का यह मानना है कि उनके पति या बेटा शराब पीकर घर में मार-मीट करते हैं। कमाई के सारे पैसे खर्च कर देते हैं और कई बार लत के कारण कच्ची या जहरीली शराब के कारण असमय मौत के शिकार हो जाते हैं।
जाहिर है इन सब घटनाओं के पीछे कारण केवल शराब है और उससे उपजी पीड़ा है जो प्रत्यक्ष रूप से महिलाओं को झेलनी पड़ती है। ऐसी पीड़ा देश के हर राज्य में रहने वाली महिलाओं की है। आप बिहार की खबर देखें या झारखंड की, राजस्थान की बात करें या छत्तीसगढ़ की, यूपी के शहर-गांव को देखे या हरियाणा को। तात्पर्य यह है कि शराबबंदी के पक्ष में सारे देश की महिलाएं हैं। वो भी गरीब, दलित वंचित, मुस्लिम और आदिवासी महिलाएं है। संभ्रात घरों की महिलाओं को इससे कोई विशेष परेशानी नहीं है। परेशानी तो उन औरतों को है जिनके पिता, पति या पुत्र इस नशे का शिकार हैं। सबसे बड़ा दुख है कि घर के मर्द जो कमाते हैं, वह शराब के ऊपर खर्च कर देते हैं। अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों का कोई निर्वाह नहीं करता। उस पर हर शाम लड़ाई और गाली-गलौज। छोटी-छोटी बात पर पिटाई। खाना पसंद का न हो तो मार खाए औरत या गर्म खाना न मिले तो भी गाली वही सुने। शराब के नशे में धुत्त होकर आदमी घर पर पड़ा रहता है। नौकरी करने वालों की नौकरी चली जाती है। गांव की औरतें अपनी जवान बहु-बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती हैं कि कहीं नशे के कारण कोई अपना या पराया उसकी अस्मत को दागदार न कर दे। इस नशे के कारण छोटी-छोटी बात पर हथियार उठा लेना और गुस्से में हत्या हो जाता बहुत आम बात है।
अगर हम बात करें आदिवासी संस्कृति की तो शराब और हड़िया सेवन इनकी संस्कृति का हिस्सा है। मगर अब गांव-गांव में विरोध शुरू हो गया है और इसका नेतृत्व कर रही हैं महिलाएं। रांची के आसपास के दो सौ से ज्यादा गांवों में शराब के खिलाफ़ मुहिम चलाई जा रही है। कई जगह महिलाओं के इस अभियान में मुखिया, पंचायत प्रतिनिधि और पुरुष भी शामिल हो रहे हैं। गांव में महिलाएं सुबह-सुबह लाठी-डंडा से लैस होकर निकलती हैं और घरों और अवैध भट्ठियों से जब्त शराब की हांडी , बर्तन, कनस्तर तोड़ दिए जाते हैं और महुआ की बनी देशी शराब जिसे 'चुलैइया' बोलते हैं, सड़कों पर बहा दी जाती है। जहां इस अभियान का विरोध होता है, वहां महिलाएं लाठी चलाने से नहीं चूकतीं।
जाहिर है यह आक्रोश एक दिन का परिणाम नहीं। पीढ़ी गुजर गई, देखते, समझते झेलते। सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं ही होती हैं। सिसई, गुमला की छोटी मुंडा अभी केवल 16 साल की है और काम के तलाश में रांची आ गई है। उसने अपना घर छोड़ दिया। कहती है, मैं छोटी थी तभी देखती थी कि शाम को आज़ा दारू पीकर झूमते हुए घर लौटते और लड़ाई -झगड़ा करते। कई बार तो बना हुआ तक खाना फेंक देते। कुछ दिनों के बाद पिताजी भी यही करने लगे। दिन भर काम करते और जितने पैसे सारे दिन काम कर कमाते, उसे दारू में खर्च कर लौटते। मां मना करती तो उसे मारते-पीटते। यह रोज का तमाशा हो गया था। घर में किसी-किसी दिन खाने को नहीं होता और पिताजी को पीने के अलावा कुछ और नहीं सूझता। बाद में मां बीमार पड़ी तो उनके इलाज के लिए पैसे नहीं थे। वो मर गई। मगर पिता का शराब पीना नियमित रहा। अब तो वह कमाने भी नहीं जाते। दिन भर पड़े रहते हैं घर में। इसलिए मैं छोड़ आई उनको। बीच-बीच में घर जाकर पैसे दे आती हूं। मेरे मना करने पर नहीं मानते। मेरा घर बर्बाद हो गया और मैं पिता के रहते भी अनाथ जैसी हूं। इसका कारण केवल शराब है।
एक दूसरा कारण यह भी है महिलाओं के विरोध का कि शराब के अड्डे पर लोगों का जमावड़ा होता है जिससे महिलाओं के ऊपर छींटाकशी की घटनाएं होती रहती हैं। शराब का अड्डा तो चना-चबेना वहीं बिकता है। लड़कों की भीड़ जमा होती है वहां। यही सब वजह है कि महिलाओं ने विरोध शुरू किया। रांची में गुलाबी गैंग भी जागरूकता अभियान चलाकर शराबबंदी कर रही है। खुशी की बात यह है कि यह अभियान पूरे देश में चल रहा है। बिहार की स्थिति तो बदल रही है।
बात वापस इस पर आती है कि क्या महिलाओं के इस शराबविरोधी अभियान के दूरगामी परिणाम होंगे। नीतीश सरकार ने इसी मुद्दे के आधार पर चुनाव जीता और अगले लोकसभा चुनाव में शराबबंदी एक चुनावी मुद्दा बन सकता है नीतीश सरकार के लिए। उत्तर भारत के कई राज्यों में महिलाएं शराब के ठेके खोलने का विरोध कर रही है। यूपी में योगीनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद महिलाआें को लग रहा है कि वी यूपी में भी शराबबंदी करवा देंगे। देखा गया कि कुछ राज्यों के दर्जन दो दर्जन जिले में महिलाओं ने कुछ घंटे से लेकर कुछ दिनों दिनों तक शराब की दुकान के आगे धरना दिया। इसका प्रचार-प्रसार टीवी आैर अखबारों के माध्यम से हुआ। इसका त्वरित परिणाम यह निकला कि देश के अनेक जिलों से महिलाओं के विरोध की खबर आने लगी। औरतें गुट बना रही है। शराब के ठेके को नष्ट कर रही हैं। यह औरतों की शक्ति और एकजुटता का प्रतीक है। साझा दुख सब महसूस करती हैं। इस बात को तमाम राजनीतिक पार्टियां समझ रही हैं और आगे बढ़कर कदम उठाने का तैयार है। मध्यप्रदेश और यूपी में भाजपा सरकार शराबबंदी की बातें कर रही है तो इधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी कई चरण में स्थान निर्धारित कर शराब विक्रय पर पाबंदी लगाने की बात कही है। महाराष्ट सरकार भी पूरी तरह से शराबबंदी की बात कर रही है। झारखंड सरकार ने शराब खुद बेचने की बात कही है तब से पुरजोर विराेध हो रहा है यहां पर। वैसे भी पास के गांवाें में महिलाओं का अभियान जारी है शराब के खिलाफ।
अब एक मुख्य बात कि क्या वाकई महिलाओं में इतनी शक्ति है कि वह शराबबंदी पर अभियान चलाकर राजनीितक पार्टियों की नींदे उड़ा सकती है और देश की राजनीति को हिला सकती है। जवाब बेशक हां में है क्योंकि हमें नहीं भूलना चाहिए कि अगर किसी मुद्दे पर महिलाएं एकजुट हो गईं तो वह चुनाव में किसी को भी हरा या जीता सकती हैं। तामिलनाडु में जयललिता के कड़े टक्कर वाले चुनाव में जीत के पीछे महिला वोट बैंक का हाथ था। और नीतीश के शराबबंदी के वादे का परिणाम तो सामने ही है। अभी शराबबंदी के मुद्दे पर महिलाएं एकजुट है। शराब के ठेकेदारों से उलझ रही है, पुलिस के डंडे भी खा रही। अपने पति की आदत छुड़ाने के लिए उससे मार खा कर भी उसका विरोध कर रही है। अगर नारियां ऐसे ही एकजुट और सशक्त हो जाएं तो शराब क्या, देश की सत्ता पलटने का ताकत रखती है।
पारिवारिक जीवन पर असर
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शराब के तमाम दुष्परिणाम है। अत्यधिक शराबखोरी से न केवल सामाजिक और पारिवारिक जीवन बर्बाद हो रहा है बल्िक लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है और कार्यक्षमता घटती है इससे। मगर आज तक किसी भी सरकार ने इस पर पर्याप्त बंदिश लगाने की कोशिश नहीं की थी। 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार ने शराबबंदी कीर प्रक्रिया शुरू की थी। पहले चरण में एक चौथाई दुकानें बंद करवाई गई। मगर यह सुधार का कार्यक्रम ज्यादा नहीं चल पाया।
बाद में शराब पीने-पिलाने की प्रवृति बढ़ती ही चली गई। जहां आसानी से उपलब्ध नहीं होता शराब वहां तस्करी कर लाया जाने लगा। गरीब इस लत के कारण कच्ची शराब पीते और मौत के मुंह में चले जाते। युवा पीढ़ी भी बर्बाद होने लगी। शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण मौत के दर में भी बढ़ोत्तरी हुई।
एनसीआरबी आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 में शराब पीकर गाड़ी चलाने से 7061 हादसे हुए है जो सालाना बीते सालों की तुलना में 1.5 फीसदी ज्यादा थे। बिहार में एक साल में 5,14,639 लीटर देशी शराब जब्त किए गए। अंग्रेजी शराब 3,10,292 लीटर और बियर 11,371 लीटर जब्त किए गए है। वहीं बिहार में पिछले 1 साल से शराब बंदी के चलते 44,557 जेल भेजे गए जबकि 40,078 लोगों पर मामला दर्ज किया गया है।
बिहार और केरल जैसे राज्यों में शराब पर पाबंदी की वजह से भारत में 2015 के दौरान शराब इंडस्ट्री की ग्रोथ भी 0.2 फीसदी रही है। यह पिछले 10 सालों में सबसे धीमी ग्रोथ है। यूरोमोनिटर की रिपोर्ट के मुताबिक कीमत बढ़ने, प्रतिबंध और कुछ राज्यों में वितरण में बदलाव की वजह से ग्रोथ घटी है। 2014 और 2013 में ग्रोथ दर 6-6 फीसदी थी, जबकि 2012 में 9 फीसदी और 2011 में 11 फीसदी थी।
अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परिणास्वरूप राजस्थान में 2,800 शराब की दुकानें बंद हुईं हैं। हरियाणा में तकरीबन 200 बार बंद हो गए। महाराष्ट्र में 15,699 शराब की दुकानें और बार बंद हो गए। तो वहीं राजधानी दिल्ली में 100 शराब की दुकानें बंद हो गईं। तमिलनाडु में 3,320 दुकानें बंद कर दी गईं। यह संख्या सरकार के स्वामित्व वाले अकेले रिटेलर टी.ए.एस.एम.ए.सी. द्वारा संचालित कुल दुकानों के आधे से ज्यादा है।
अनुमान है कि महिलाओं के विरोध और सरकार के शराबंदी के फैसले के कारण सामजिक बदलाव बहुत तेजी से होगा। इधर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर भी होने लगा है। राजमार्ग पर शराब के दुकान नहीं खुलेंगे तो लोग रिहायशी इलाकों में दुकान खोलेंगे। इसका पुरजोर विरोध महिलाओं द्वारा होगा क्योंकि घर के आसपास ठेका होगा तो उन्हें उसी समस्याओं से दो-चार होना होगा जिनके विरोध में वो उठ खड़ी हुई हैं। बस अभियान को जारी रखने के जरूरत है, सामाजिक बदलाव ऐसे ही आएंगे।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 17 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआदरणीय , उत्तम लेख ,सत्य विचार , तर्कसंगत विषय ,आभार।
ReplyDeleteबहुत उपयोगी और सारगर्भित विवेचन -धन्यवाद .
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’अफवाहों के मकड़जाल में न फँसें, ब्लॉग बुलेटिन पढ़ें’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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