Monday, April 17, 2017

दिन बैसाख के



मन पलाश का बहके
तन दहके अमलतास का ।
कर्णफूल के गाछ तले
ताल भरा मधुमास का ।
अधरों के स्पन्दन से
खुली आँख के स्वप्न से
किसलय कई खिले आलि
ठूंठ पड़े इस जीवन में
छाया प्रणय आभास का ।
बदरा फूटा मेह से
भीगा अँचरा नेह से
हर आखर में प्यार लिख
रच पतरा प्रीतालेख का
कसाव जैसे दृढ बाहुपाश का ।
धूपीली दोपहरिया में
आँखे लगी देहरिया में
खबर आज भी कोई नहीं
दग्ध तप्त बैसाख में
मन सूना है आकाश का ।

8 comments:

कविता रावत said...

धूपीली दोपहरिया में
आँखे लगी देहरिया में
खबर आज भी कोई नहीं
दग्ध तप्त बैसाख में
मन सूना है आकाश का ।
..बहुत सुन्दर ...
जग सूना-सूना
दग्ध तप्त बैसाख में

डॉ एल के शर्मा said...

बहुत ही भाव भीनी रचना कृपया साझा करने की अनुमति दें।

डॉ एल के शर्मा said...

बहुत ही भाव भीनी रचना कृपया साझा करने की अनुमति दें।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुंदर भाव लिए ... लाजवाब रचना

'एकलव्य' said...

बहुत सुन्दर !कमाल की पंक्तियाँ आभार।

कौशल लाल said...

बहुत सुंदर

Onkar said...

खूबसूरत रचना

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

अत्यंत ही खूबसूरत रचना,,,,रश्मि जी।
पहली बार पढी है आपकी लिखी रचनाएं, लेकिन अब मुझे निरन्तर पढना होगा ।।।। धन्यवाद