रांची से हमलोग 24 मार्च को मेदिनीनगर गए थे एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए। सुबह जब वापसी होने लगी 25 को तो दस बज गए थे। धूप तेज थी मगर सोचा कि राजा मेदिनी का किला देख ही लिया जाए। पूरे रास्ते पलाश के जंगल की खूबसूरती देख मंत्रमुग्ध होते आए थे। जंगल दहक रहा हो जैसे। सुना था पलामू के किले के लिए कि अब खंडहर ही बच गया है। तय हुआ मीनारें न सही दीवारें तो कुछ बयां करेंगी।
बेतला जाने के रास्ते में है पलामू किला। मेदिनीनगर से दस किलोमीटर की दूरी पर बेतला जाने के रास्ते में । यानी डाल्टनगंज से 20 मील दक्षिण-पूर्व पर स्थित है। कच्चे रास्ते पर हिचकोले खाते हम चल दिए। रास्ता बन रहा है अभी। शायद कुछ दिनों बाद काेलतार की सड़क मिले हमें वहां।
बता दें कि पलामू के राजा मेदिनी राय जनता के प्रिय राजा थे। उन्हीं के नाम पर जनता की पुरजोर मांग के बाद डाल्टेनगंज का नाम बदलकर मेदिनीनगर किया गया है। कर्नल डाल्टन जो ब्रिटिश राज्य में छोटानागपुर के पहले कमिश्नर थे, उन्हीं के नाम पर यहां का नाम डाल्टनगंज पड़ा। उस वक्त डाल्टेनगंज 'बिजरा' बाग के नाम से प्रसिद्ध् थ्ाा। ऊंची पहाड़ियों के बीच पलामू किला औरंगा नदी के किनारे बसा है। मगर अफसोस कि हमें औरंगा नदी मार्च के महीने में भी सूखा मिला। अनुमान लग गया कि गर्मी में कितनी त्राहि मचती होगी यहां।
रास्ते में हमें दूर ऊंची पहाड़ी पर एक किला नजर आया। रास्ता समझ नहीं आ रहा था। थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर एक विशाल किले का बाहरी हिस्सा दिखा । सब तरफ झाड-झंखाड़ उग आए हैं। बहुत हद तक दीवारें ढकी हुई हैं इनसे। मगर खंडहर देख कर भी कभी कितना जीवंत रहा होगा इसका अहसास होता है। 400 वर्ष पुरानी विरासत है पलामू की। उपेक्षित मगर दर्शनीय। अगर अन्य राज्यों की तरह इस विरासत की साज-संभाल हो तो हम अपने अतीत को संजो पाएंगे। पलामू के प्रसिद्ध चेरो राजा मेदिनी राय ने इस किले का निर्माण कराया था। अंदर की तरफ एक कुआं हुआ करता था, ये सुना था मगर अब वो भर गया है। किले की बनावट भव्य और नक्काशीदार है। निर्माण कला मुगलकालीन लगती है। जगह-जगह गुंबद भी बनाए गए हैं। दूर कई कमरे नजर आ रहे थे। अनुमान है कि यह सैनिकों का निवास स्थान होगा। मगर यह किला अधूरा बना हुआ है।
किले के मुख्य द्वार के सामने कुछ अवशेष थे जो हमें आभास देते थे कि यह सुरंग रहा होगा। भग्न ऊंची दीवारें और ऊपर मीनारें। जरा अंदर जाने पर विशाल दरवाजा जो अपनी भव्यता आ आभास दे रहा था हमें। प्रधान फाटक नागपुरी फाटक के नाम से जाना जाता है। अंदर उग आए झाड़ और पेड़ों के बीच वाच टावर जैसी मीनार मिली।पूरा किला पत्थर और कंक्रीट से बना लगा। टूट-फूट के बावजूद देखने लायक जगह लगी हमें। हम जिस किले में थे वो नया किला था। पुराना किला पहाड़ी पर था, वहां जाना संभव नहीं था हमारे लिए। कुछ वक्त की कमी और कोई बताने के लिए भी नहीं था। बहुत सुनसान क्षेत्र । लगा किसी जानकार को लेकर आना चाहिए था।
हमें और अंदर तक जाने का मन था। दूर किला दिख रहा था मगर रास्ता नहीं समझ आया। पता लगा कि ऊपर से ऊपर औरंगा नदी तक जाने के लिए एक अधूरा पुल है वहां। इतिहास से पता चलता है किले के निर्माण के समय ही राजा मेदिनी की मृत्यु हो गई, इसलिए यह अधूरा ही रहा। अगर अधूरा किला का अवषेश इतना भव्य है तो पूरा बनने के बाद क्या होता। हम मन में इस कचोट को साथ लिए बाहर आए कि काश, इसका जीर्णोधार हो पाता। हम पुराने किले तक जा पाते तो कितना अच्छा होता। पलामू किला एेतिहासिक है और इससे पहले कि पूरी तरह ढह जाए, इस विरासत की साज संभाल कर लेनी चाहिए।
रास्ते में हमें दूर ऊंची पहाड़ी पर एक किला नजर आया। रास्ता समझ नहीं आ रहा था। थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर एक विशाल किले का बाहरी हिस्सा दिखा । सब तरफ झाड-झंखाड़ उग आए हैं। बहुत हद तक दीवारें ढकी हुई हैं इनसे। मगर खंडहर देख कर भी कभी कितना जीवंत रहा होगा इसका अहसास होता है। 400 वर्ष पुरानी विरासत है पलामू की। उपेक्षित मगर दर्शनीय। अगर अन्य राज्यों की तरह इस विरासत की साज-संभाल हो तो हम अपने अतीत को संजो पाएंगे। पलामू के प्रसिद्ध चेरो राजा मेदिनी राय ने इस किले का निर्माण कराया था। अंदर की तरफ एक कुआं हुआ करता था, ये सुना था मगर अब वो भर गया है। किले की बनावट भव्य और नक्काशीदार है। निर्माण कला मुगलकालीन लगती है। जगह-जगह गुंबद भी बनाए गए हैं। दूर कई कमरे नजर आ रहे थे। अनुमान है कि यह सैनिकों का निवास स्थान होगा। मगर यह किला अधूरा बना हुआ है।
किले के मुख्य द्वार के सामने कुछ अवशेष थे जो हमें आभास देते थे कि यह सुरंग रहा होगा। भग्न ऊंची दीवारें और ऊपर मीनारें। जरा अंदर जाने पर विशाल दरवाजा जो अपनी भव्यता आ आभास दे रहा था हमें। प्रधान फाटक नागपुरी फाटक के नाम से जाना जाता है। अंदर उग आए झाड़ और पेड़ों के बीच वाच टावर जैसी मीनार मिली।पूरा किला पत्थर और कंक्रीट से बना लगा। टूट-फूट के बावजूद देखने लायक जगह लगी हमें। हम जिस किले में थे वो नया किला था। पुराना किला पहाड़ी पर था, वहां जाना संभव नहीं था हमारे लिए। कुछ वक्त की कमी और कोई बताने के लिए भी नहीं था। बहुत सुनसान क्षेत्र । लगा किसी जानकार को लेकर आना चाहिए था।
हमें और अंदर तक जाने का मन था। दूर किला दिख रहा था मगर रास्ता नहीं समझ आया। पता लगा कि ऊपर से ऊपर औरंगा नदी तक जाने के लिए एक अधूरा पुल है वहां। इतिहास से पता चलता है किले के निर्माण के समय ही राजा मेदिनी की मृत्यु हो गई, इसलिए यह अधूरा ही रहा। अगर अधूरा किला का अवषेश इतना भव्य है तो पूरा बनने के बाद क्या होता। हम मन में इस कचोट को साथ लिए बाहर आए कि काश, इसका जीर्णोधार हो पाता। हम पुराने किले तक जा पाते तो कितना अच्छा होता। पलामू किला एेतिहासिक है और इससे पहले कि पूरी तरह ढह जाए, इस विरासत की साज संभाल कर लेनी चाहिए।
3 comments:
वाह..
very nice
Thank u so much for information and feeling about palamu kila.
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