शांत..सूनी सी है दोपहर
उजली-चमकती धूप बैठी है पीपल के पत्तों पर...न ढलती है शाम
न बीतता है वक्त...
न बीतता है वक्त...
लगातार बज रही एक धुन है.... उदासी का राग जाने कौन अलाप रहा है.....
मन भागना चाहता है अतीत की ओर.....और मैं गुजरे वक्त की रस्सी को जल्दी से समेट कर आगे देखना चाहती हूं....
मन भागना चाहता है अतीत की ओर.....और मैं गुजरे वक्त की रस्सी को जल्दी से समेट कर आगे देखना चाहती हूं....
कि जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं....ऐसा नहीं कि तुम नहीं तो दुनिया नहीं...
फागुन फिर से आया है .......रंग अब भी चमकीले हैं पहले की तरह
फागुन फिर से आया है .......रंग अब भी चमकीले हैं पहले की तरह
तस्वीर- रामगढ़ घाटी में थी थी एक दिन
सुन्दर कोलाज़
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ।
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