रक्ताभ कपोल पर
लाल गुलाल
लजाय गई गोरी ।
भीगी चुनरिया
दहका अंचरा
बौराये गई होरी ।
चंदन सा महका
तन भीग भीग बहका
छेड़ती हवाओं से
फगुआये गई होरी ।
रंगों के बहाने है
अंग सब भिगाने हैं
कवन रंगरेज से
रंगाये गई होरी ।
बेसुध बोली बोल के
आगे पीछे डोल के
पिचकारी भर उबै श्याम
ललचाये गई होरी ।
बंसुरिया की तान जी
छेड़ दिए कान जी
बरसाने से निकसी राधे
बुलाये गई होरी ।
बृज की छोरियन को
वृन्दावन की गोरियन को
भँग की ठण्डाई दे
नचाये गई होरी ।
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