आकाश में खिल आया है चांद...सफ़ेद..धवल...उज्जवल। कोना-कोना जगमगा उठा है चांदनी से। खीर का भोग लगाकर चांदनी में चलनी से ढांपकर रख दिया होगा कई लोगों ने अब तक छत में। मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारियों में लगे होंगे बहुत लोग।
मगर इन सबसे अलग....मुझमें अलग उर्जा भरती है शरद पूर्णिमा की रात। धवल चांदनी में ऐसा उत्साह जागता है कि जी चाहता है सारी रात छत पर चांद देखते गुजार दूं। या अांगन में लगे हरसिंगार के पेड़ तले बैठकर उजला चांद देखूं और शेफ़ाली की गमक को अपने अंदर समेटती रहूं। एक-एक कर झरेंगे फूल और धवल रात में फूलों की चादर बिछ जाएगी।
कितना रूमानी है यह ख़्याल...प्रकृति कितनी खूबसूरत है....आज शरद पूर्णिमा की रात है.....अमृत झरेगा आसमान से...भिगोएगा मेरे मन को...मैं ख़्यालों के उड़नखटोले में बैठ चांद को छूने की कल्पना साकार करूंगी।
सोलहकलाओं वाली चांदनी रात तुम्हारा स्वागत है.......
1 comment:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "डॉ॰ कलाम साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Post a Comment