Wednesday, August 3, 2016

मोहब्‍बत बूंद है..


मोहब्‍बत
गुलाबी गुलाब पर
ठहरी
ओस की बूंद है
.......

रहती है पंखुडि‍यों के
सि‍मटने तक
या हवा के झोंके से
कांपकर गि‍रने तक
....
मोहब्‍बत
पारदर्शी बूंद है
दूबों की नोक पर ठहरी
लि‍ए बेपनाह खूबसूरती
........
मोहब्‍बत
ठहरती है गुलाब पर
हरी दुबकि‍यों पर भी
मगर कि‍सी के दि‍ल में
जाने कब तक ?

1 comment:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 05/08/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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