Tuesday, July 26, 2016

मन के कपाट ( कहानी )



और दि‍नों के अपेक्षा सुबह जल्‍दी नींद खुली। बदन भारी सा लगा। हमारे बीच देर रात तक बहस चली थी, मगर सोते-सोते तक हम समझौते तक पहुंच चुके थे। फि‍र भी मन -तन में भारीपन पसरा रह गया, जागने तक भी।

आंखें घुमाकर देखा, कुणाल बि‍स्‍तर पर नहीं थे। बाथरूम की बत्‍ती जली हुई थी। यानी मुझसे पहले उठ गए आज। मैंने भी एक लंबी अंगडा़ई ली और बि‍स्‍तर छोड़ दि‍या। सुबह भागा-दौड़ी की होती है। मैं सीधे उठकर कि‍चन में चाय के लि‍ए पानी चढ़ा आई। तब तक ये बाथरूम से नि‍कलकर अखबार पढ़ रहे थे।

मैंने चुपके से एक नजर देखा, कुणाल के चेहरे पर रात की बातों की कोई उद्धि‍ग्‍नता नहीं थी। शांत से अखबार में सर घुसाए बैठे थे। तसल्‍ली हुई कि‍ रात वाली बात कम से कम अभी तो नहीं खि‍ंचेगी। मैं फ्रेश होकर वापस कि‍चन गई और दो कप चाय ले आई। उन्‍होंने मुझे देख कर एक स्‍माइल दी और वापस पेपर में। मैंने भी दूसरा अखबार उठाया और हेडलाइन्‍स पर सरसरी नि‍गाह डालने लगी। अभी उतना वक्‍त नहीं होता कि‍ सारी खबरें आराम से पढ़ी जाएं।। अंश के स्‍कूल का समय हो जाता है। उसे उठाने में ही काफी देर लगती है। बार-बार जागकर फि‍र से सो जाता है। उसकी नींद पूरी तरह खोलने का एक ही तरीका है। आधी नींद में ही उसे लेकर छत पर जाना जहां रोज कबूतर उसके इंतजार में बैठे रहते हैं। कुछ देर कबूतरों के साथ खेलकर वापस आता है तो फि‍र फटाफट स्‍कूल जाने को तैयार हो जाता है।

मैंने चाय खत्‍म की और उसे जगाया। वह कुनमुनाता सा उठा और सीधे सीढ़ि‍यां चढ़ने लगा। हम छत पर सुबह जाते हैं तो गमले में बहुत फूल खि‍ले होते हैं। उन्‍हें देखकर सच में बहुत अच्‍छी अनुभूति‍ होती है। सच है.. जो चीज आंखों को भाए और उसकी खुश्‍बू भी प्‍यारी हो तो मन में उतर जाती है। इन दि‍नों टच मी नॉट का पौधा नि‍कल आया है गमले में। हम मां-बेटे दोनों सारे पत्‍तों को जब तक छू न ले, उन्‍हें शरमाकर मुरझाया देख न लें, नीचे नहीं उतरते। बहुत मजा आता है। बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं। सच है कि‍ अपने बच्‍चों के जरि‍ए हम फि‍र से अपना बचपन जीते हैं।

मैं इस सोच में डूबी ताजा खि‍ले उड़हुल के लाल फूलों को नि‍हार ही रही थी कि‍ पंख फड़फडाते हुए सैकड़ों कबूतर छत पर उतर आए। अंश बड़े प्‍यार से आ-आ करता उन्‍हें दाना दे रहा था। अब वो दोस्‍त बन गए हैं। अंश को छत पर घूमता देख ही कई कबूतर आ जाते हैं..फि‍र तो एक के बाद एक सि‍लसि‍ला। कई बार कुछ कौअे भी उतर आते हैं साथ-साथ। अंश कहता है..भगाओ इन्‍हें, ये बहुत जल्‍दी-जल्‍दी दाने चुग जाते हैं। मैं समझाती हूं, थोड़े से ज्‍यादा दाने डाल दो। इन्‍हें भी भूख लगती है। वो मेरी बात मान जाता है। पर उसे सफ़ेद कबूतर ज्‍यादा पसंद आते हैं।

थोड़ी देर बाद मैं उसे लेकर नीचे आई। वो फ्रेश होने गया और मैं नाश्‍ते और अंश के टि‍फि‍न की तैयारी में लग गई। अंश अभी प्रेप में ही था, इसलि‍ए ऑफि‍स नि‍कलते वक्‍त कुणाल उसे स्‍कूल छोड़ने जाते हैं। इस वक्‍त बहुत हड़बड़ी मची रहती है। जब तक मैं कि‍चन से सब समेटती कुणाल ने आवाज लगा ही दी....सोनाली, जल्‍दी करो।

भागकर पहुंची तो देखा कुणाल के साथ अंश भी नहा चुका है। कुणाल तैयार हो रहे हैं।  मैंने जल्‍दी से अंश को यूनि‍फार्म पहनाया और दोनों के लि‍ए नाश्‍ता लगा दि‍या डाइनिंग टेबल पर। मैं इनलोगों के जाने के बाद आराम से ब्रेकफास्‍ट लेती हूं, गाना सुनते या टीवी देखते हुए। पहले मैं अकेली बि‍ल्‍कुल नहीं खाती थी। पर जब से अंश हुआ है, सारी दि‍नचर्या ही गड़बड़ा गई है।

उन्‍हें डाइनिंग टेबल पर छोड़कर मैं गीले तौलि‍ए धूप में देने के लि‍ए बाथरूम घुसी। कुणाल कभी टावल बाहर नहीं नि‍कालते धूप में। कभी बाथरूम के स्‍लैब पर तो कभी बि‍स्‍तर पर गीला तौलि‍या पड़ा रहता है।  जैसे मैं अंदर गई...वो ही जानी-पहचानी खुश्‍बू तैर रही थी। मैं थम गई। ये कुणाल की देहगंध थी। ऐसी चीजें  कई बार ऐसे अचानक आपके सामने आती है कि‍ आप कल्‍पना भी नहीं कर सकते। मुझे बहुत पसंद है कुणाल की देहगंध। ये मुझे खींचती है उनकी ओर। उन दि‍नों जब अंश नहीं हुआ था, मैं कुणाल के ऑफि‍स से लौटने पर अक्‍सर लि‍पट जाती थी। वो हटाते मुझे। कहते..पसीने से भीगा हूं...शॉवर तो लेने दो पहले।

मैं कहती..उं..हूं...रहने दो...मुझे अच्‍छी लगती है तुम्‍हारे बदन से नि‍कलती ये गंध। तुम्‍हारे होने का अहसास दि‍लाती है।  कुणाल हंसते। बि‍ल्‍कल पागल हो तुम..ये कहकर माथे पर एक चुंबन देते और अगले पल बाथरूम में। वो आफि‍स से लौटने के बाद बि‍ल्‍कुल आराम से रहना चाहते। अपनी पसंदीदा सफेद कुर्ते-पायजामे में तो कभी बारमूडा-टी शर्ट में। फि‍र हम साथ चाय पीते। दि‍न भर की बातें शेयर करते और कई बार चांदनी रात में सैर को नि‍कल जाते।

मैं इन प्‍यारी यादों में खोई थी कि‍ कुणाल की तेज आवाज आई...कहां हो, मैं जल्‍दी से दौड़ी। कल रात की तल्‍खी के बाद सुबह से हमारे बीच कोई बात नहीं हुई थी।  मैं चाहती थी कुछ कहना। पता तो चले कि‍ जनाब का मूड कैसा है।  यूं भी उस खुश्‍बू ने मुझे अतीत में ले जाकर छोड़ दि‍या था, जो जीवन के सबसे हसीन लम्‍हें थे। वक्‍त के साथ सब छूटता जाता है। हम वही रहते हैं और सब कुछ बदलने लगता है।

मैं इस वक्‍त कुणाल को अपनी फीलींग्‍स बताना चाहती थी। कहा- पता है कुणाल अभी न......उसने तुरंत मुझसे कहा....आई हेव रश टू गो...प्‍लीज वी टॉक टू लैटर........

मैं चुप हो गई। दोनों को बाय कि‍या और आकर सोफे में धंस गई। यही तो होता है। हम अपने जीवन में इतने बि‍जी हो गए हैं कि‍ एक-दूसरे की भावनाओं को समझने का वक्‍त नहीं। पहले बि‍ना बोले भी हम जान जाते थे, कि‍ क्‍या कहना चाहता है वो। और अब ये आलम हैं कि‍ शब्‍द होठों पर अटके  रह जाते हैं और हमसे मुंह मोड़कर कोई चला जाता है।
रात भी तो यही हुआ। बेवजह की बात पर हम उलझ पड़े। माना शादी के 7 साल नि‍कल गए हैं, इसका ये मतलब नहीं कि‍ अब हममें पहले वाली बात ही न रहे। पहले हम एक-दूजे से कोई भी बात नहीं छुपाते थे। बातें अच्‍छी हो या बुरी, सब शेयर करते। अब कई बातें तो मुझे बहुत बाद में पता चलती हैं। मैं पूछती तो बड़े आराम से कह देते हैं कुणाल, अरे बताया तो था। तुम भूल गई। बस इसी बात पर लड़ाई।
अभी उस दि‍न नीता आई थी। हम कॉलेज में साथ थे। कुणाल से भी अच्‍छी दोस्‍ती है उसकी। और अब आॅफि‍स में भी साथ है।  उसने कहा मुझसे, यार तुम कुणाल को समझाती क्‍यों नहीं। वह जब देखो सबसे उलझ पड़ता है। जब से नई बॉस आई है, कुणाल के अंदाज ही बदले हुए हैं। काफी कांशस हो गया है। पहले की तरह खुश भी नहीं रहता। बॉस को भी मुंह पर जवाब दे देता है। कहीं इसका कोई गलत परि‍णाम न हो। 

मैं हैरान थी क्‍योंकि‍ मुझे जरा भी जानकारी नहीं थी इन बातों की। कुणाल ने ये भी नहीं कहा था कि‍ उसकी नई बाॅस आई है। हां, कुछ दि‍नों पहले ये जरूर कहा था कि‍ हो सकता है उसका प्रमोशन हो। लगता है उनका प्रमोशन रूक गया और नई बॉस की ज्‍वायनिंग आई है,  इस करण वो कर्म्‍फट नहीं है। घर में भी चि‍ड़चि‍ड़ाते रहते हैं।

रात यही पूछ दि‍या तो बि‍ल्‍कुल उखड़ गये। कहने लगे क्‍या जरूरी है कि‍ आफि‍स की सारी बातें घर लेकर आऊं, तुमसे डि‍स्‍कस करूं। वहां क्‍या कम परेशानी है जो अब घर में भी शुरू कर दूं। मैंने कहा- तुम बताओ या न बताओ, परेशानी तो घर लेकर आते ही हो। घर पर भी खुश नहीं रहते। तो क्‍यों नहीं कहते सारी बात। बस...इसी बात पर लंबी बहस छि‍ड़ी। मैंने भी कहा...ठीक है.;अब से न तुम बताना कोई बात न ही मैं बताऊंगी। हम अपने हि‍साब से चीजे तय करेंगे, और कोई सवाल नहीं पूछेंगे।तुम अपने हि‍साब से जिंदगी जि‍ओ और मैं अपनी तरह से। कोई सवाल-जवाब नहीं। सुनकर नरम पड़े कुणाल। कहा ठीक है...अब से बता दूंगा, अब सो जाओ, देर हुई।

मैं जानती थी कि‍ ये एक समझौता था। बात खत्‍म नहीं हुई। पर अगर कुणाल ऐसे दि‍ल में बात रखते रहेंगे तो उनके सेहत के लि‍ए भी ठीक नहीं। फि‍र सारा कुछ तो मन पर है। जब मूड अच्‍छा नहीं रहेगा तो मेरे और अंश के साथ भी खुश नहीं रहेंगे। इससे हमारे बीच भी तनाव बढ़ेगा। इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गई, पता भी नहीं चला। सुबह भी कोई बात नहीं हुई।

मैं सोचने लगी कि‍ क्‍या करूं। अगर अभी जो फीलिंग आई है, उसे नहीं कहती हूं तो शाम उसके लौटने तक न ये मूड बाकी रहेगा न ही वो शब्‍द..जो मन को भि‍गो रहे हैं।
मैंने तुरंत मोबाईल उठाया और टाइप कि‍या- तुम घर से अभी चले गए, बि‍ना कुछ कहे, बि‍ना सुने। मगर सारे घर में तुम्‍हारी वही पहचानी सी खुश्‍बू तैर रही है। यूं लग रहा जैसे तुम मुझे आगोश में भर कर पूरे घर में गोद में उठाए घूम रहे हो। मैं डूबी हूं तुम्‍हारी यादों में, तुम्‍हारे प्‍यार में। तुम मुझे इस नींद से न जगाना। आज मैं वही सोनाली हूं, जि‍से प्‍यार से तुम सोनू-सोनू कहते थे। आई लव यू। जल्‍दी आना, मैं पुराने पलों को फि‍र जीना चाहती हूं। सि‍र्फ तुम्‍हारी....सोनू।
 अब चलूं कुणाल के पसंदीदा पनीर की सब्‍जी और बूंदी रायता बना लूं। आज वो जल्‍दी लौटेंगे, मैं जानती हूं। शादी के गुजरते सालों में प्‍यार कम हो न हो, कहीं दबता चला जाता है। हम अपनी-अपनी उम्‍मीद पूरी नहीं होने का रोना तो रोते हैं मगर कोई पहल नहीं करते। आज मैं शुरूआत कर ही दूं। कुणाल जो अपने मन के कपाट बंद करने लगे हैं वो, अब मैं उसे खोलकर रहूंगी, झगड़े से नहीं, प्‍यार से। 

तस्‍वीर...उदयपुर की 

24 जुलाई 2016 को प्रभात खबर के 'सुरभि‍' में प्रकाशि‍त कहानी


2 comments:

Anita said...

मोहक कहानी..

Madan Mohan Saxena said...

बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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