तुमने दिया
सारा वक्त
कोमल भाव
असीम स्नेह
और आत्मा को
संतृप्त करता अनुराग
पर साथ ही मिला मुझे
प्रतिपल संदेह
अविश्वास
और अंतस को छीलती
लपटें उठाती भाषा
तुम भाषविज्ञ हो
बुद्धिमान हो, मगर
अभिमानी भी
इसलिए हो व्यापारी
तोलकर देना
वापस लेना
अधिकार तज एकाधिकार
जताना
पास रखना
पल-पल परखना
शूलों से घात करना
जो किया नहीं कभी
उन गलतियों का
हर बार हिसाब करना
तुम
क्या हो
कभी सोचना
प्यार किया, व्यापार किया
या किया
हृदय का सौदा।
तस्वीर-एक सूने दोपहर की
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति स्वर्गीय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteजो प्यार में सौदा कर ले वो किसी भी काबिल नहीं ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-07-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2396 दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
प्रेम गली अति सांकरी जा में दो न समाय ..
ReplyDelete..एक होकर चलने का नाम है प्यार, वर्ना सब बेकार ..
बहुत सुन्दर
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 08/07/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
bahut khoob ..
ReplyDeleteएक नाव में बैठ कर जाने से ही यह जीवन रूपी नाव पर होती है
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