Thursday, July 28, 2016

रुगड़ा और खुखड़ी : सावन में मजेदार स्‍वाद

 रुगड़ा 
बरसात के मौसम में रुगड़ा होता है। यह साल के जंगलाें में मि‍लता है।रुगड़ा दाे प्रकार का होता है, सफेद और काला रुगड़ा। आदि‍वासी महि‍लाएं इसे जंगलों से चुनकर लाती हैं।
जहां से रुगड़ा नि‍कलता है उस जगह पर जमीन में दरारें पड़ जाती है। यह दोनों तरह से बि‍कता है, मि‍ट्टी सहि‍त या धाेकर। धोने के बाद गोल-गोल सफेद दि‍खता है।इसे काटकर या फोड़कर पकाया और खाया जाता है। स्‍वाद में बि‍ल्‍कुल मांसाहारी। ग्रामीणों का कहना है कि‍ रूगड़ा तभी नि‍कलता है जब बादल गरजते हैं। जि‍तनी अधि‍क बरि‍श होगी, रूगड़ा उतना ही नि‍कलेगा।
दरअसल जहां साल या सखुआ वृक्ष की पत्‍ति‍यां गि‍र कर सड़ती हैं, वहीं रूगड़ा उत्‍पन्‍न होता है। आदि‍वासि‍यों का मानना है कि‍ जि‍तना अधि‍क बादल कड़केगा, रूगड़ा उतना ही मि‍लेगा। यह मशरूम की प्रजाति‍ का होता है और स्‍वाद के साथ-साथ भरपूर पौष्‍टि‍क भी होता है। इसलि‍ए इसका दाम भी बहुत ज्‍यादा है। इस मौसम में रूगड़ा 400 रूपए कि‍लो बि‍का शुरूआत में और अभी भी बाजार में इसकी कीमत 160 रूपये कि‍लो है।

खुखड़ी 

रुगड़ा के बाद अब खुखड़ी की बारी....हो सकता है कि‍ अलग-अलग जगहों पर इसके भी अलग नाम हो जैसा कि‍ रुगड़ा के बारे में पता चला हमें।
खुखड़ी, गांव में जि‍से लोग खुखड़ी के नाम से जानते हैं, शहर में उसे मशरूम कहा जाता है। दोनों में अंतर बस इतना है कि‍ जहां खुखड़ी जंगल, खेत, मेड़ आदि‍ में प्राकृति‍क रूप से नि‍कलता है, वहीं मशरूम की खेती की जाती है। खुखड़ी या मशरूम फफूंदो का फलनकाय है, जि‍स छत्‍ता या छाती, कुकुरमुत्‍ता या खुखड़ी कहा जाता है। खुखुड़ी के कई प्रकार होते हैं। पाए जाने वाले सभी खुखड़ी खाद्य योग्‍य नहीं होते। इसकी पहचान जरूरी है। आदि‍वासि‍यों और ग्रामीणों को इसकी पहचान हाेेती है और इन्‍हें जंगलों से लाकर शहर के बाजारों में बेचा जाता है।
इसका स्‍वाद भी बहुत अच्‍छा होता है। खुखड़ी में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है और यह स्‍वास्‍थ्‍य और स्‍वाद दोनों तरह से बेहतरीन है। अभी रांची में 400 रूपये कि‍लो के भाव से बि‍क रही है खुखड़ी। स्‍वाद में मांसाहार को टक्‍कर देता हुआ मगर पूर्णत: शाकाहार है यह। इसके स्‍वाद का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि‍ लोग 400 रूपये कि‍लो में भी खूब खरीदते हैं। इसे सिर्फ प्‍याज से भूनकर खाया जाता है तो कई लोग हल्‍का मसाले का प्रयोग करते हैं।
गांव में इसे सखुआ के पत्‍ते में रखकर नमक डालने के बाद पत्‍ते का मुंह बंद कर दि‍या जाता है। इसके बाद चूल्‍हे के अंगारे नि‍काल कर उसके ऊपर रखकर पकाया जाता है। इसकी सोंधी खुश्‍बू और स्‍वााद के दीवाने होते हैं ग्रामीण।
जो स्‍वाद प्राकृति‍क रूप से नि‍कले खुखड़ी का होता है वो कृत्रि‍म रूप से उगाए मशरूम का नहीं। इसलि‍ए बरसात में खासकर सावन में इसकी जबरदस्‍त मांग होती है।

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अच्छी जानकारी

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