Thursday, June 23, 2016

रावी के कि‍नारे - कि‍नारे



फि‍र आएंगे डलहौजी
आज अब डलहौजी को बाय-बाय कहने का दि‍न। हमारे साथ बच्‍चों को भी यह जगह भा गर्इ थी। जब हम चेक आउट करने लगे तो अभि‍रूप ने कहा...मैं बहुत मि‍स करूंगा इस जगह को। काउंंटर पर बैठे मैनेजर ने उससे कहा- तुम शादी के बाद यहीं आना। वह झेंप के बाहर चला गया।

पहाड़ पर सीढ़ीदार खेत 
चंबा जाने के दो रास्‍ते हैं। एक खज्‍जि‍यार होते हुए और दूसरा बनीखेत वाला। पहले हमने सोचा था कि‍ खज्‍जि‍यार वाले रास्‍ते से जाएंगे। एक बार फि‍र से उस खूबसूरत मैदान में कुछ वक्‍त बि‍ताते हुए। मगर हमें नि‍कलते-नि‍कलते 10 बज गए थे। आज ही वापसी भी थी। लगा उस दि‍न की तरह जाम में फंस गए तो सब गड़बड़ हो जाएगी। तो हमने दूसरा रास्‍ता अपनाया और चल पड़े। डलहौजी के पहले दि‍न मैं चमेरा लेक नहीं जाकर वापस आ गई थी। सोचा जरा रास्‍ते से देखते चलूं। बीच मेंं रॉक गार्डेन भी है।

उस दि‍न धौलदार पर्वत पर बर्फ चमक रही थी धूूप में मगर आज कुहासा था। शायद कल शाम की बारि‍श का असर था। आगे बढ़ने पर सड़क से बांयी तरफ एक मंदि‍र का गुंबद नजर आ रहा था। यह शायद ति‍ब्‍बति‍यों का धर्मस्‍थल होगा। हम सड़क पर आगे बढ़े।

मठ का सुनहरा गुंबद और पर्वत शि‍खर पर बर्फ

अब देवदार के साथ-साथ चीड़ का पेड़ भी नजर आने लगा। जहां हल्‍की गर्मी हो वहां चीड़ ज्‍यादा उगते हैं। सड़क की बार्यी तरफ घाटी थी, जहां खूबसूरत सीढ़ीदार खेत और रंग-बि‍रंगे घर मन मोह रहे थे।

रॉक गार्डन आ गया। छोटा सा ही है और वहां प्राकृति‍क रूप से जलधारा का एक स्रोत नीचे तक आया है जि‍से बांधकर छोटा स्‍वीमि‍ंग पुल की तरह बना दि‍या गया। वहां कुछ बच्‍चे तैर रहे थे। हमने थोड़ी देर का ब्रेक लि‍या। सड़क पर गोलगप्‍पा वाला अपनपा खोमचा लगाया हुआ था। कुछ स्‍कूली बच्‍चे खा रहे थे। हमने भी खाया। टेेस्‍ट बि‍ल्‍कुल अमृृतसर वाले गोलगप्‍पे की तरह था। हमारे यहां इतना मीठा नहीं बनता।

रॉक गार्डेन 
 मंदि‍र शि‍खर 
उधर सड़क पार एक मंदि‍र था। हम गए अंदर। अच्‍छी जगह थी पर वक्‍त नहीं था हमारे पास। माता का मंदि‍र था। बाहर से प्रणाम कि‍या और नि‍कल पड़े। उधर एक जंगली फूूल ने मुझे बहुत आकर्षित कि‍या। थोड़ी-थोड़ी दूर पर सफेद फूल खि‍ला हुआ था। कुछ-कुछ केवड़े जैसा। मैंने याद रखने को तस्‍वीर ले ली।

जंगली फूल 

चमेरा लेक का एक मनोहारी दृश्‍य 

बहुत ही खूबसूरत नजारा 

 आगे बढ़ने पर चमेरा लेक दि‍खा। बहुत खूबसूरत। हरा-हरा पानी, ऊपर नीला आसमान। एक रास्‍ता नीचे की ओर जाता है डैम के लि‍ए दूसरा ऊपर से चंबा की ओर नि‍कल जाता है। चेमरा लेक रावी नदी का पानी रोककर बनाया गया है। इसे पर्यटन स्‍थल के रूप में वि‍कसि‍त कि‍या गया है। यहां बोटिंग होगी है। मगर हम नहीं गए। ऊपर से ही देखा और आगे बढ़ गए। बहुत दूर तक घाटि‍यों में लेक आपके साथ साथ चलता नजर आता है। नीचे सर्पीली घाटि‍यां, हरा पानी का बांध और ऊपर नीले आसमान में सफेद बादलों का डेरा। मंत्रमुग्‍ध हो जाए काेेई भी। मुझे लगता है कहीं भी घूमने के लि‍ए पर्याप्‍त वक्‍त लेकर जाना चाहि‍ए। जहां मन कहे वहीं रूक जाओ। पर इस जिंदगी में ये मुमकि‍न कहां होता है। चमेरा लेक पर बोटिंग न करने का मलाल बच्‍चों को रह ही गया।


सुल्‍तानपुर के पास है यह स्‍कूल कैंपस 

ताल फि‍ल्‍म में यह स्‍कूल एश्‍वर्या राय का घर था 

ड्राइवर को कह रखा था कि‍ जहां ताल की शूटिंग हुई थी, वो जगह हमें दि‍खाना।  उसने थोड़ी दूर जाने पर सड़क कि‍नारे गाड़ी रोक दी। दूर दि‍खाकर कहा यहीं हुई थी ताल की शूटि‍ंग। यह एक स्‍कूल कैंपस है और जगह का नाम जुम्‍महार। ठीक इसे बगल से रावी नदी बहती है, जो फि‍ल्‍म में बहुत खूबसूरती से फि‍ल्‍माई गई है।
जब मैं खज्‍जि‍यार के जाम में फंसी थी तो एक महि‍ला से काफी देर तक बात हुई। वो चंबा की थी। उन्‍होंने कहा मुझसे...आओ आपको अपने साथ चंबा ले चलूं। मैंने कहा, आऊंगी जरूर। तब कहा था उन्‍होंने कि‍ हमें वहां कुछ खास तो नहीं लगता मगर आपको वास्‍तव में खूबसूरती देखनी हो तो बारि‍शों में आओ। ताल फि‍ल्‍म की शूटिंग भी बरसात में हुई थी इसलि‍ए हरि‍याली इतनी उभरकर आई थी। स्‍कूल कैंपस के सामने बहुत बड़ा मैदान है और पीछे पहाड़। मन बांध लेते हैं ऐसे दृश्‍य। पर हमें नि‍कलना था और नि‍कल चले आगे।

रावी नदी का दूधि‍या पानी 

नदी, पत्‍थर पर्वत..
अब हमें आगे दि‍खी रावी नदी। स्‍वच्‍छ..नि‍र्मल..। रहा नहीं गया। हमलोग रूके कुछ देर के लि‍ए और सावधान के बोर्ड की अवहेलना करते हुए नीचे पानी तक पहुंचे। रावी नदी पर चंबा के पास एनएचपीसी ने बांध बनाया है। इसमें कभी भी पानी छोड़ा जा सकता है। इसलि‍ए थोड़ी-थोड़ी दूर पर नीचे न जाने का बोर्ड लगा हुआ है। हम नहीं माने। हालांकि‍ बेपरवाही से नहीं मगर पानी तो छूना ही था।  उफ...बर्फ की तरह ठंढ़ा पानी । मैंने और अवि‍ ने खूब मस्‍ती की। बहुत देर रहे, पानी का कलकल सुनते। चि‍ड़ि‍यों को उड़ते देखा और सफेद पत्‍थरों से टकराकर पानी का रंग और दूधि‍या होते महसूस कि‍या। अवि‍ ने कुछ चि‍कने छोटे सफेद पत्‍थर चुने और पॉकेट में डाल लि‍या घर ले जाने को। नदी के पश्‍चि‍म में पर्वतों ने मन मोह लि‍या हमारा।

जरा संभलकर बेटा
रावी नदी का प्राचीन नाम 'इरावती और परुष्‍ाानी'  है। इरा का अर्थ स्‍वादि‍ष्‍ट पेय होता है। रावी इरावती का ही अपभ्रंश है।  यह नदी मध्‍य हि‍मालय की धौलदार श्रृंखला की शाखा बड़ा भंगाल से नि‍कलती है। रावी नदी 'भादल और तांतगि‍रि‍' दो खड्डो से मि‍लकर बनती है। यह नदी चंबा से खेड़ी के पास पंजाब में प्रवेश करती है। यह उन पांच नदि‍यों में से एक है जि‍नसे  (पंजाब पांच नदि‍यों का प्रदेश) का नाम पड़ा। इसकी लंबाई 720 कि‍लोमीटर है, परंतु हि‍माचल में इसकी लंबाई 158 कि‍लोमीटर है। यह काफी उग्र नदी मानी जाती है। सि‍कंदर महान के साथ आए यूनानी इति‍हासकार ने इसे 'हाइड्रास्‍टर और रहो आदि‍स' नाम दि‍या था। रावी नदी  बहती हुई जाकर पाकि‍स्‍तान के चि‍नाब नदी से मि‍ल जाती है। यहां यह नदी चंबा और भरमौर में बहती है।

सुनो नदी की आवाज..कलकल

याद के लि‍ए कुछ तस्‍वीरें 
तो हमलोग इरावती के तट पर पानी में कि‍ल्‍लोल करते रहे काफी देर तक। यात्रा की थकान मि‍ट गई। मुझे पहाड़ बेहद पसंद है मगर सर चकराता है सर्पीली राहों में। सो लगातार चलना पसंद नहीं। अब रावी नदी ने हमारी थाकना हर ली तो हम फि‍र से प्रफुल्‍ल होकर चंबा की ओर चल दि‍ए। बस पहुंचने ही वाले थे और हमें अहसास हो रहा था कि‍ यहां काफी गर्मी है। मगर रास्‍ता बहुत ही खूबसूरत है। आपका सारा वक्‍त चीड़, देवदार, रावी और पहाड़ के ढलवां रंग-बि‍रंगे घर देखने में नि‍कल जाएगा और आप पाएंगे कि‍ आप शहर में प्रवेश कर रहे हैं।


3 comments:

Vishnu Sharan said...

बहुत ही सुन्दर वर्णनं..

सु-मन (Suman Kapoor) said...

मैं भी दो बार जा आई हूँ | हमारा हिमाचल सच में बहुत सुंदर है |

Onkar said...

बेहद सुन्दर वर्णन