मां,
अभी दोपहर का वक्त है। घर में कोई नहीं है। मैं अपने कमरे में लेटी हूं, खिड़की से बाहर देख रही हूं। वैशाख की गर्मी चरम पर है। कड़ी धूप में बाहर गुलमोहर के लाल फूल दहक रहेे है। मैं देखती हूं एक छोटी सी बच्ची उन फूलों को चुन रही है, गर्मी से बेपरवाह। तभी उसकी मां की आवाज आती है...चीनू..जल्दी आ, बाहर क्या कर रही है। धूप लग जाएगी। बीमार पड़ने का शौक हो रहा क्या।
बच्ची चीनू जवाब देती है...अब्बी आई मां...देखो कित्ते सुंदर फूल हैं। लेकर आई।
मां, मुझे अचानक तुम्हारी बहुत याद आई। उस बच्ची में मुझे अपना चेहरा दिखा और मां की आवाज में तुम। मन में कई बातें उभर रही हैं। सोच रही हूं, लिख डालूं तुम्हें एक पत्र। तुम सोचोगी, मुझे क्या सूझी कि चिट्ठी लिख रही हूं। आज फोन और व्हाटसएप के जमाने में चिट्ठी कौन लिखता है। पर जानती हो मां, जो बातें इंसान कह नहीं सकता, उसे लिख लेता है। भावनाएं कलम से उतरती हैं, शब्दों से नहीं। हमलोग प्यार जता नहीं पाते। शायद यह संस्कार है कि हमारी उम्र के लोग लव यू मां कभी नहीं कहते, हां किसी बात पर झिड़क जरूर देते हैं।
मैं ये चिट्ठी तुम्हें पोस्ट करूंगी। ये तुम्हें मिलेगा ठीक 'मदर डे' वाले दिन यानी 8 मई को। इस बार मैं भी मदर्स डे मना लूंगी। अच्छी चीजों को अपनाने में कैसा गुरेज।
मां तुम्हें याद है गर्मियों के दिन। जब आम के पेड़ से भरी दोपहरी पके आम टपककर गिरते थे। जामुुनों के पेड़ पर पके काले जामुन देख हमारे मुंह में पानी आता था। तेज हवाओं से गुलमोहर के पेड़ से सरसराती आवाजें आती थीं और तुम हमें भूत का भय दिखाकर कमरे में बंद कर देती थी। हम भाई-बहन खुसर-पुसर करते रहते और तुम सो जाती तो चुपके से सिटकनी खाेेलकर भरी दोपहरी धूप में भाग जाते थे। बागीचे वाले आम के पेड़ से जब आम गिरता तो हम बच्चों में छीना-झपटी हाेती। बहुत मीठे आम होते थे वहां के।
बच्ची चीनू जवाब देती है...अब्बी आई मां...देखो कित्ते सुंदर फूल हैं। लेकर आई।
मां, मुझे अचानक तुम्हारी बहुत याद आई। उस बच्ची में मुझे अपना चेहरा दिखा और मां की आवाज में तुम। मन में कई बातें उभर रही हैं। सोच रही हूं, लिख डालूं तुम्हें एक पत्र। तुम सोचोगी, मुझे क्या सूझी कि चिट्ठी लिख रही हूं। आज फोन और व्हाटसएप के जमाने में चिट्ठी कौन लिखता है। पर जानती हो मां, जो बातें इंसान कह नहीं सकता, उसे लिख लेता है। भावनाएं कलम से उतरती हैं, शब्दों से नहीं। हमलोग प्यार जता नहीं पाते। शायद यह संस्कार है कि हमारी उम्र के लोग लव यू मां कभी नहीं कहते, हां किसी बात पर झिड़क जरूर देते हैं।
मैं ये चिट्ठी तुम्हें पोस्ट करूंगी। ये तुम्हें मिलेगा ठीक 'मदर डे' वाले दिन यानी 8 मई को। इस बार मैं भी मदर्स डे मना लूंगी। अच्छी चीजों को अपनाने में कैसा गुरेज।
मां तुम्हें याद है गर्मियों के दिन। जब आम के पेड़ से भरी दोपहरी पके आम टपककर गिरते थे। जामुुनों के पेड़ पर पके काले जामुन देख हमारे मुंह में पानी आता था। तेज हवाओं से गुलमोहर के पेड़ से सरसराती आवाजें आती थीं और तुम हमें भूत का भय दिखाकर कमरे में बंद कर देती थी। हम भाई-बहन खुसर-पुसर करते रहते और तुम सो जाती तो चुपके से सिटकनी खाेेलकर भरी दोपहरी धूप में भाग जाते थे। बागीचे वाले आम के पेड़ से जब आम गिरता तो हम बच्चों में छीना-झपटी हाेती। बहुत मीठे आम होते थे वहां के।
तुम्हें हमारा ये चुप से भागना पता नहीं चलता। पर एक दिन धूप के कारण या किसी और वजह से छोटे भाई के नाक से लगातार खून बहने लगा। हम डर गए। बहुत कोशिश की रोकने की। नहीं रूका, तो तुम्हें उठाना पड़ा। अब तो हमारा बाहर भागने का सारा राज पता चल गया था तुम्हें। तुम्हारा रौद्र रूप हमने उस दिन देखा था। तुम एक तरफ भाई को संभाल रही थी, दूसरी तरफ हम दोनों बहनों को खूब डांटा। हमें बहुत बुरा लगा। तब तुम बहुत गंदी लगी थी हमें। लगा, वो भाई है इसलिए इतना मानती हो, और हमारी कदर नहीं। तुमने हमारा बाहर जाना एकदम रोक दिया।
हम दोनों बहनेंं तुमसे मन ही मन नाराज रहने लगी। पापा ने हमें कुछ नहीं कहा था। तब लगा पापा कितना मानते हैं हमलोगों को और तुम हमें जरा भी प्यार नहीं करती। सारा दिन तो सोई रहती हो और हमें खेलने भी नहीं जाने देती। शाम को पढ़ने बिठा देती हो। जबरदस्ती दूध का गिलास पकड़ा देती हो। छि:,हमें तो बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। हम चुप से उसे नाली में बहा देते थे। तुम्हें पता भी नहीं चलता था।
पता है मां, आज फिर से मेरे घुटनों में दर्द हो रहा है। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में परेशानी होती है कभी-कभी । जब डाक्टर ने कहा कि आपके शरीर में कैल्सियम की कमी है। रोजाना दूध पिया कीजिए, सुबह की धूप लिया करें। सच कहती हूं मां, आंख में आंसू आ गए। तुम इसी तकलीफ से बचाने को हमेंं दूध देती थी और हम उसे फेंक देते थे। उसका खामियाजा आज भुगत रही हूं।
पता है मां, आज फिर से मेरे घुटनों में दर्द हो रहा है। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में परेशानी होती है कभी-कभी । जब डाक्टर ने कहा कि आपके शरीर में कैल्सियम की कमी है। रोजाना दूध पिया कीजिए, सुबह की धूप लिया करें। सच कहती हूं मां, आंख में आंसू आ गए। तुम इसी तकलीफ से बचाने को हमेंं दूध देती थी और हम उसे फेंक देते थे। उसका खामियाजा आज भुगत रही हूं।
आज जब मेरे बच्चे ठीक वैसा ही करते हैं। जब मैं सारा दिन का काम खत्म कर आराम करना चाहती हूं तब पता लगता है कड़ी धूप में बच्चे बाहर हैं तो उन्हें पकड़ कर लाना पड़ता है।मेरी डांट सुनकर बच्चे जब बुरा सा मुंह बनाते हैं, झुंझलाते है तब समझ आता है कि एक औरत जो सुबह से उठकर घर की चक्की में पिसती है, तो उसके लिए कुछ देर केे आराम का क्या मतलब है। उस वक्त हमें लगता था तुम आरामपसंद हो। तब नहीं जानती थी मां कि एक मां के कितने रूप होते हैं।
मुझेे याद है खेल कर घर लौटने में थोड़ी देर होती, या सांझ घिर आता तो घर में पांव धरने वक्त हम डर से कांपते रहते। कोशिश होती कि किसी तरफ छुपकर कमरे में चली जाऊं और तुम देखो तो कहूं कि मैं तो कब से घर में हूं। मगर ये कोशिश शायद ही कभी कामयाब हुई हो। तुम घर के बाहर ही टहलती मिलती। दहाड़कर पूछती, कहां लगाई इतनी देर। वक्त का होश नहीं। मुझे बहुत चिढ़ होती। लगता हमारी पहरेदारी के अलावा इन्हें कोई काम नहीं। घर से भाग तो नहीं गई थी। ये सिलसिला तब तक चला, जब तक हमारी शादी नहीं हो गई। सांझ ढलने से पहले हमें घर के अंदर होना है।
मुझेे याद है खेल कर घर लौटने में थोड़ी देर होती, या सांझ घिर आता तो घर में पांव धरने वक्त हम डर से कांपते रहते। कोशिश होती कि किसी तरफ छुपकर कमरे में चली जाऊं और तुम देखो तो कहूं कि मैं तो कब से घर में हूं। मगर ये कोशिश शायद ही कभी कामयाब हुई हो। तुम घर के बाहर ही टहलती मिलती। दहाड़कर पूछती, कहां लगाई इतनी देर। वक्त का होश नहीं। मुझे बहुत चिढ़ होती। लगता हमारी पहरेदारी के अलावा इन्हें कोई काम नहीं। घर से भाग तो नहीं गई थी। ये सिलसिला तब तक चला, जब तक हमारी शादी नहीं हो गई। सांझ ढलने से पहले हमें घर के अंदर होना है।
आज ही खबर पढ़ी अखबार में। एक लड़की को उसके दोस्त पार्टी के लिए शाम को पास ही रेस्टोरेंट में जाने के नाम पर गाड़ी में लेकर कुछ दूर गए और कोल्डड्रिक के बहाने शराब पिलाकर जबरदस्ती करने की कोशिश की। मैं कांप गई। रोज ऐसी ही खबरों से अखबाार भरे रहते हैं। छोटी बच्चियां शाम को बाहर गई, फिर नहीं लौटी। सुबह उसकी लाश मिली या अधमरी हालत में बरामद हुईं। मैं अपनी 10 वर्ष की बच्ची को सीने से चिपका लेती हूं और मैं तुममे तब्दील हो जाती हूं। यहां मत जाओ, ये मत करो, जल्दी आओ। मां, तुम सच कहती थी- जब मां बनोगी तभी मां का अर्थ समझ आएगा। मां, तुम्हारी ही केयरिंग थी कि मुझे कभी किसी बुरी परिस्थिति में फंसना नहीं पड़ा। तुम्हारी नजरों के साए में पलकर हमेशा महफूज और मजबूत रही।
मैं अपनी बेटी पर बंदिशे नहीं लगा सकती, मगर उसके समझदार होने तक उसकी सुरक्षा का जिम्मा मेरा है। ठीक तुम्हारी तरह। मैं उसे रोकूंगी नहीं मगर साए की तरह साथ रहूंगी।
मां, मुझे तुम रोज याद आती हो। याद है तुम्हें जब घर में ढेरों मेहमान आते हैं तो तुम कैसे चकरघिन्नी सी नाचती थी, सारा काम अकेले करती, होठों पर मुस्कान सजाकर। तुमने हमें कभी काम में नहीं झोंका। हमेशा बोला पढ़ो। तब एक गिलास पानी के लिए भी तुम्हें आवाज लगाती थी आैर तुम जूते पाॅलिश से लेकर कपड़े धोने तक का काम बिना थके करती थी। हम तुम्हें रोबोट की तरह काम करते देखते रहते थे। पूरा घर तुम पर टिका था, उस पर हमारी मांग पूरी करने में तुम जरा सा देर करती तो तुम्हें कैसे डपटते थे हम। पर तुम्हारे चेहरे पर एक सहज मुस्कान बराबर बनी रहती थी।
मां, मुझे तुम रोज याद आती हो। याद है तुम्हें जब घर में ढेरों मेहमान आते हैं तो तुम कैसे चकरघिन्नी सी नाचती थी, सारा काम अकेले करती, होठों पर मुस्कान सजाकर। तुमने हमें कभी काम में नहीं झोंका। हमेशा बोला पढ़ो। तब एक गिलास पानी के लिए भी तुम्हें आवाज लगाती थी आैर तुम जूते पाॅलिश से लेकर कपड़े धोने तक का काम बिना थके करती थी। हम तुम्हें रोबोट की तरह काम करते देखते रहते थे। पूरा घर तुम पर टिका था, उस पर हमारी मांग पूरी करने में तुम जरा सा देर करती तो तुम्हें कैसे डपटते थे हम। पर तुम्हारे चेहरे पर एक सहज मुस्कान बराबर बनी रहती थी।
तुम हमसे कोई उम्मीद नहीं करती थी। पर सबकी उम्मीदें तुमसे जुड़ी हुई थी। तुम घर की धुरी थी, जिसके आसपास हम सब नाचते थे। पापा भी। तुम्हारा क्रोध करना, रोकना-टोकना तब बहुत बुरा लगता था। पर आज लगता है कि तुमने ये नहीं किया होता तो हमारी जिंदगी वैसी नहीं होती, जैसी आज है। तुम अचार, बड़ी, जैम, जैली खूब बनाती थी, पर हमें नही कहा कि सीखो ही, करो ही। क्योंकि तुम चाहती थी कि हमलोग पढ़ कर अपने जीवन को सफल करे। पढ़ाई पूरी करें क्योंकि तुम दसवीं कक्षा तक ही पढ़ पाई थी। इसलिए चाहती थी कि हम जितना ज्यादा पढ़ सकेे, पढ़े। इसलिए घर के कामों से हम आजाद थे।
इसी का नतीजा है न मां कि तुम्हाारी दोनों बेटियां सफल है। एक लेक्चरर और दूसरी कलेक्टर। लाड़-प्यार के साथ बंदिशे जरूरी हैं, तुम जानती थी ये बात। वाकई जब तक मां नहीं बनी मैं, मां का सही अर्थ और परेशानियां नहीं समझ पाई। तुमने पूरे परिवार को एकसूत्र में बांध रखा था। दादी के कड़वे बोल भी तुम हंसते हुए सहती थी। हमारे विरोध करने पर समझाती थी कि बड़ों को जवाब नहीं देते। हमने सहने और क्षमा करने की कला तुमसे ही तो सीखी है।
इसी का नतीजा है न मां कि तुम्हाारी दोनों बेटियां सफल है। एक लेक्चरर और दूसरी कलेक्टर। लाड़-प्यार के साथ बंदिशे जरूरी हैं, तुम जानती थी ये बात। वाकई जब तक मां नहीं बनी मैं, मां का सही अर्थ और परेशानियां नहीं समझ पाई। तुमने पूरे परिवार को एकसूत्र में बांध रखा था। दादी के कड़वे बोल भी तुम हंसते हुए सहती थी। हमारे विरोध करने पर समझाती थी कि बड़ों को जवाब नहीं देते। हमने सहने और क्षमा करने की कला तुमसे ही तो सीखी है।
मां, तुम हमेशा नानी के घर जाने को लालायित रहती। हमारी चिरौरी करती कि चलो। पर हमें अच्छा नहीं लगता था वहां जाना। हम कहते कि क्या करोगी वहां जाकर। जाना ही है तो अकेली जाओ। पर तुम हमें छोड़कर कभी नहीं जाती। कम दिनों के लिए जाए वो मंजूर मगर हमें साथ ही ले जाती। वहां नानी से खूब बातेे करती। खूब हंसती। मैं सोचती अजीब है मां, यहां क्या होता है ऐसा कि इतनी बातें करती रहती है, काम बिल्कुल नहीं करती।
आज जब तुमसे मिलने सा तुम्हारे सानिध्य में रहने का मन होता है, और अपने जॉब, बच्चों के स्कूल के कारण चाहकर भी तुम्हारे पास नहीं जा पाती, तो महसूस करती हूं तुम्हारा दर्द। कितनी बातें होती हैं जो र्सिफ तुमसे ही करना चाहती हूं। तुम समझती हो मुझे, मेरी आदते और मेरी तकलीफें। मां, मां जैसा कोई नहीं। मुझे तुम्हारी कमी बहुत खलती है। जाने समाज का कैस नियम है कि बेटियों को मां का घर छोड़कर जाना ही पड़ता है। बचपन के दिन याद आते हैं। तुम्हारी झिड़कियों को याद कर अब मुस्कान फैलती है होठों पर। जब मैं बच्चों को डांटती या समझाती हूं तो लगता है मेरे मुंह से तुम्हारी ही बोली निकल रही है।
सच है एक बेटी को जितना मां समझती है या एक मां जितना अपनी बेटी को समझ सकती है, उतना दुनियां का कोई और आदमी नहीं। मैं खुशनसीब हूं मां, कि तुम मेरे साथ हो। पास नहीं पर दूर भी नहीं। मैं आज तुमसे उन गलतियों और कड़वे बोल के लिए क्षमा मांगती हूं, जो एक मां को समझे बिना बोले थे मैंने।
मां..हैप्पी मदर्स डे....एक बेटी की थोड़ी सी भावनाएं हैं , कुछ अनकहा, जो आज कहा है तुमसे। मुझे उम्मीद है कि एक ऐसी ही चिट्ठी मेरी बेटी भी लिखेगी मुझे, जब मैं तुम्हार उम्र की हो जाऊंगी।
मां..हैप्पी मदर्स डे....एक बेटी की थोड़ी सी भावनाएं हैं , कुछ अनकहा, जो आज कहा है तुमसे। मुझे उम्मीद है कि एक ऐसी ही चिट्ठी मेरी बेटी भी लिखेगी मुझे, जब मैं तुम्हार उम्र की हो जाऊंगी।
बहुत सारा प्यार और चरणस्पर्श तुम्हें
प्रभात खबर के सुरभि में दिनांक 8/5/16 को मातृ दिवस पर छपी कवर स्टोरी
1 comment:
बहुत सूंदर पाती
बधाई आपको मातृ दिवस पर
शुभकामनाएं ।
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