सूखी पत्तियों सी
बिखर रही थी
उसने बुहारकर समेटा
सारा वजूद
जैसे सूखती जिंदगी में
जान फूकने का उसे
शगल हो कोई
प्रेम का हरापन
शाखों में उतरता
कि एक चिंगारी ने
फूंक डाला सारा वजूद
अब जंगल में आग लगी है
जल रहे गांव भी
सुना है हरी पत्तियों ने
सूखकर झड़ने से
इंकार कर दिया था...
2 comments:
Achchhi kavita.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 15 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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