Sunday, March 6, 2016

बस तेरी वफ़ा का रंग नहीं.....



इस फागुन सारे रंग हैं मेरे पास
बस इक तेरी वफ़ा का रंग नहीं !
आम की बौर भरी शाखें भी हैं
सरसों की मद भरी पांखें भी हैं 
बस इक तेरी याद की भंग नहीं !!

कल सेमल के दहकते फूल झड़े
बेवक्त बारिशों में जब ओले पड़े
मौसम को ठिठोली के ढंग नहीं ,
बस इक तेरी वफ़ा का रंग नहीं !!

मन भंवरे सा उड़ उड़ जाता था
तू अँगना में धमाल मचाता था
अब वो गीली चुनर भी तंग नहीं ,
बस इक तेरी वफ़ा का रंग नहीं !!

बाहर सफ़ेद बरफ की चादर है
अंतर्मन ये निर्झर है झराझर है
स्मृति कहती तू अब संग नहीं ,
बस इक तेरी वफ़ा का रंग नहीं !!

फूलों की बातों से मन भरे कौन
हाथों के चटख रंंग से डरे कौन
सतरंगी फाग का वो अनंग नहीं
बस इक तेरी वफ़ा का रंग नहीं !!

4 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " खूंटा तो यहीं गडेगा - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Onkar said...

Beautiful lines

shailrachanablogspotin said...

antaratma tak pahunchane vali kavita

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।