Friday, February 26, 2016

प्रेम नि‍ष्‍कासि‍त माना जाएगा....


प्रेम, धीरे-धीरे सूखता जाएगा
चाहेगा मन, फि‍र से सब एक बार
मगर जरूरत नहीं होगी
साथ-साथ रहते, साथ-साथ चलते
सारे सवाल भोथरे हो जाएंगे
जवाब की प्रतीक्षा अपनी उत्‍सुकतता खो बैठेगी
पाने की आकांक्षा, खोने का दर्द
एकमएक लगने लगेंगे
धूप-छांव सा मन
एक ही मौसम को सारी ईमानदारी सौंपेगा
मन रेगि‍स्‍तान
या कि‍सी हि‍ल स्‍टेशन की
ठंढ़ी सड़क सा बन जाएगा
आत्‍मा निर्विकार
भावनाओं का गला घोंटकर
सबको परास्‍त करने में लग जाएगी
नहीं सोचेगा कोर्इ भी
कि‍सी की पीड़ा, कि‍सी की चाहत
सब दौड़ते नजर आएंगे
एक-दूसरे को कुचलते-धकि‍याते
वक्‍त कि‍सी के लि‍ए नहीं रूकेगा
क्रोध के दि‍ल से नि‍कलते ही
सबसे पहले अधि‍कार झरेगा
फि‍र प्‍यार
हम साथ-साथ जीते हुए
अनदेखे फ़ास्‍ले तय करते जाएंगे
बहुत बड़ी हो जाएगी अपनी-अपनी दुनि‍या

हम दि‍खा देंगे खुद को खुशहाल , मगर
हमारी आत्‍मा में बसी खुश्‍बू
हमसे ही दूर होगी
वक्‍त थमेगा नहीं, लोग आक्रमक और
असहनशील होंगे
ह्दय से करूणा वि‍लुप्‍त होगी
शर्म महसूस होगी
अपनी तकलीफों और आंसुओ को दर्शाने में
मन क्रूर और वाणी वि‍नम्र होगी
चेहरा दर्पण से जीत जाएगा

और बचा प्रेम
धीरे-धीरे बंद मुट्ठि‍यों से नि‍कल जाएगा
दि‍ल
कि‍स्‍मत को कोसता पत्‍थर हो जाएगा
सीने पर नहीं ठहरेगा फि‍र
हरेक इंसान के हाथों में अस्‍त्र की तरह पाया जाएगा
इस तरह प्रेम
समूची पृथ्‍वी से नि‍स्‍काषि‍त माना जाएगा। 


तस्‍वीर..एक झरोखा...जो प्रेम जैसा खूबसूरत है..

1 comment:

Onkar said...

सुन्दर रचना