वो भी जानता था
सांसे
कब की चुक गई हैं
मगर
मानना नहीं चाहता था
वेंटीलीटर के सहारे
कृत्रिम श्वांस के आरोह-अवरोह को
जीवन मान
खुश हो रहा था....
मगर कब तक
उपकरणों के सहारे
जिलाए रखने का भ्रम
पाला जा सकता था
एक न एक दिन
धर्य चुकना था
सांसें थमनी थी
अंदर की उकताहट को
बाहर आना ही था
और जिस दिन
कृत्रिम सांस रोक दी गई
सप्रयास
एक पल के लिए
बहुत बुरा लगा, जैसे
हो गई हो अपने ही हाथों
एक हत्या
मगर
अगले ही पल
सब कुछ सामान्य
पलकों की कोर भी नहीं भीगी
मोबाईल से लगातार जाने लगे
रिश्तेदारों को कॉल
गाड़ियों को व्यवस्थित करने का
कड़े शब्दों में
मिलने लगा निर्देश
रूककर
दो आंसू बहाने का
वक्त नहीं किसी के पास
न पलटकर देखने का वक्त
कि क्या खो गया
जिम्मेदारियां बड़ी होती है
किसी की मौत से
मन से मरे रिश्ते की अर्थी
कांधे पर धर, श्मशान पहुंचाना
बहुत आसान होता है
बजाय
सारा दिन प्यार जताकर
अकेले में झल्लाना
चलो
कृत्रिम श्वांस , कृत्रिम प्यार
से मुक्ति का पर्व मनाएं
बहुत दिन ढो लिए गए रिश्ते को
नकली आंसू का कफ़न ओढाएं
किसी की मां की अर्थी निकली है गली से
हम भी बहाने से दो आंसू बहा
मातम मना आएं
आजकल सारे रिश्ते
ऐसे ही होते हैं.....मतलबी।
3 comments:
सच आज के दौर में इंसान मरने के पहले जाने कितनी बार मर चुका होता है......
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
सुनने में कठोर लगती है पर कितनी सच बात है ... रिश्ते मतलबी हो गए हैं ...
कड़वी सच्चाई..... किन्तु फिर भी रिश्ते की गर्माहट को महसूस करने की कोशिश अवश्य करे
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