तुम्हारी कोई जगह नहीं....
तुम
शिराओं के रक्त में
रवां सही
तुम
सांसों की डोर से
बंधे सही
तुम
आंखों से हो रूह में
उतरे सही
तुम
दिन के चारों पहर में
मौजूद सही
तुम
अब मेरी आदतों में
शामिल सही
ये सारे अहसास
मुझसे
बावस्ता सही
मगर अब
तुम
मेरी आंखों से
उतर चुके हो
तुम
हो अब भी मेरे आसपास
मगर
मेरी जिंदगी में अब
तुम्हारी
कोई जगह नहीं.....।
1 comment:
आप की लिखी ये रचना....
06/09/2015 को लिंक की जाएगी...
http://www.halchalwith5links.blogspot.com पर....
आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित हैं...
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