उदास होना
लक़्जरी है मेरे लिए
जबकि
कपड़ेे धो-सुखाने के बाद
अभी भी
बच्चों के जूते पर पालिश बाकी है ।
उदास होना
लक़्जरी है मेरे लिए
जबकि
दिन-रात की चक्की में
उम्मीदें पिसती रहती हैं
भावनाओं की खिल्ली
उड़ाता पाया जाता है
वो हर इंसान
जिस पर भी भरोसा कर
अपने सपने सौंपे
और चंद झूठे वादों को
खजाना समझ
छाती से लगाए फिरते रहे।
उदास होना
लक़्जरी है मेरे लिए
जबकि
भूखी है एक्यूरियम की
सुनहली मछलियां
छत पर इंतजार में बैठे हैं
सैकड़ों कबूतर
कुछ दानों की आस में
झपट पड़ते हैं आहट पा
और मैं
गहराती उदासी में डूबती
जबरन रोकती हूं
आंसूओं को छलकने से।
उदास होना
लक़्जरी है मेरे लिए
कि एक ही इंसान
बार-बार क्षमा मांग
वही छल दुहराता रहे
तो क्षमता खुद ब खुद
पैदा हो जाती है
बर्दाश्त करने की
तब अपनी ही उदासी का
मजाक उड़ाता है मन
कहता है
हजारों काम अभी बाकी है
धोखेबाज दुनिया के बीच
अब भी
तेरे बच्चे की मुस्कान बाकी है।
उदास होना
लक़्जरी है मेरे लिए
कि जिन्हें
रिश्ते संभालना नहीं आता
ऐसा साथ होने से
ऐसों के लिए रोने से
कहीं बेहतर है
चिडियां, मछलियों और
फूलों से दोस्ती करना
और
नन्हें से बच्चे की ऊंगली थाम
फिर से बच्चा बन
उनकी नजरों से दुनियां देखना।
उदास होना
लक़्जरी है मेरे लिए
जबकि
कुकर में सीटी आनी बाकी है
लौटते ही होंगें बच्चे स्कूल से
गेट से ही चिल्लाते
मां, कहां हो, भूख लगी है
अब तो
उदासी खुद कहेगी मुझसे
मुस्कान तेरी राह तकती है
जा, कि
उदास होना वाकई लक़्जरी है मेरे लिए।
7 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, परमवीरों को समर्पित १० सितंबर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
नई पोस्ट : दिन कितने हैं बीत गए
बहुत बी भावपूर्ण पंक्तिया । सही है स्त्री खुश होने की बजह ढूढ ही लेती है ।
काश!! ये लक्ज़री सबको नसीब हो!! :)
उदासी बेवजह नहीं होती कुछ न कुछ इससे सीख तो मिलती ही है
बहुत बढ़िया
सुन्दर, भावपूर्ण ।बधाई
श्री गणेश जन्मोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाएं!
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