मैं बार-बार जाकर लौटी हूं
कभी दहलीज से
कभी मुहाने से
अब इस बार मेरे कदम
सरहद पार ले आए हैं मुझे
अब लौटना मुमिकन नहीं
कभी दहलीज से
कभी मुहाने से
अब इस बार मेरे कदम
सरहद पार ले आए हैं मुझे
अब लौटना मुमिकन नहीं
नहीं है दरमियां हमारे
काटों की बाड़ या संगीन का पहरा
न ही चीन की दीवार सी
ऊंची और लंबी दूरी है पाटनी
काटों की बाड़ या संगीन का पहरा
न ही चीन की दीवार सी
ऊंची और लंबी दूरी है पाटनी
पर मेरे पैरों को
जकड़ लिया है धरती ने
पुकारती है अवनि
कहती है कातर ध्वनि से
आ..अब तू मुझसे मिल जा
मिट्टी सी हो गई है, मिट्टी बन जा
जकड़ लिया है धरती ने
पुकारती है अवनि
कहती है कातर ध्वनि से
आ..अब तू मुझसे मिल जा
मिट्टी सी हो गई है, मिट्टी बन जा
खुद के टुकड़ों को जोड़ पाना
अब तेरे भी वश की बात नहीं
तुझे पता है, तू औरत है
तेरी अब भी कोई बिसात नहीं
अग्नि में तपकर भी
अब नहीं दमकेगी तू कुंदन सी
अब तेरे भी वश की बात नहीं
तुझे पता है, तू औरत है
तेरी अब भी कोई बिसात नहीं
अग्नि में तपकर भी
अब नहीं दमकेगी तू कुंदन सी
अब मुझको यहीं धसना होगा
अपने ही हाथों
कफ़न ओढ़ना होगा
मैं तुझसे दूर चली आई हूं
अब सब कुछ वहीं तज आई हूं
अपने ही हाथों
कफ़न ओढ़ना होगा
मैं तुझसे दूर चली आई हूं
अब सब कुछ वहीं तज आई हूं
लहू से लथपथ मेरे
पैरों के निशान
घर की दहलीज से मिटा देना
सिवा अपने आत्मसम्मान के
कुछ और लेकर नहीं आई हूं
मैं सरहद पार चली आई हूं।
पैरों के निशान
घर की दहलीज से मिटा देना
सिवा अपने आत्मसम्मान के
कुछ और लेकर नहीं आई हूं
मैं सरहद पार चली आई हूं।
10 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, नारी शक्ति - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बढ़िया ... रश्मि जी
वाह स्त्री की व्यथा को कितना सुंदर रूप दिया है आपने।
लहू से लथपथ मेरे
पैरों के निशान
घर की दहलीज से मिटा देना
सिवा अपने आत्मसम्मान के
कुछ और लेकर नहीं आई हूं
मैं सरहद पार चली आई हूं।
बहुत सुन्दर
तुझे पता है, तू औरत है
तेरी अब भी कोई बिसात नहीं
अग्नि में तपकर भी
अब नहीं दमकेगी तू कुंदन सी
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण.. वाह्ह्ह्ह्ह
तुझे पता है, तू औरत है
तेरी अब भी कोई बिसात नहीं
अग्नि में तपकर भी
अब नहीं दमकेगी तू कुंदन सी
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण.. वाह्ह्ह्ह्ह
बहुत सुन्दर ,मन को छूते शब्द ,शुभकामनायें और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
नारी जब ठान लेती है तो सब कुछ कर गुज़रती है ...
मन के जज्बात को बाखूबी लिखा है ...
बहुत सुंदर पंक्तियां--केवल सम्मान के और कुछ भी नहीम है मेरे पास?
सरहद के पार चली आई हूं!
नारी की पीडा--अहम को भी चटकाती रही है--?
बहुत सुंदर पंक्तियां--केवल सम्मान के और कुछ भी नहीम है मेरे पास?
सरहद के पार चली आई हूं!
नारी की पीडा--अहम को भी चटकाती रही है--?
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