Wednesday, April 15, 2015

मैं दरि‍या का पानी...


पढ़ तो लूं हर्फ तेरे
मि‍टाने से पहले
देख लूं फि‍र एक बार
तुझको
दूर
जाने से पहले

प्‍यार होता नहीं
मुकम्‍मल
कभी कि‍सी का
खुद को समझा तो लूं
तुम्‍हें
समझाने से पहले

मैं दरि‍या का पानी
तू पतवार
आ चूम लूं तुझको
फि‍र नई
चोट खाने से पहले

7 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16-4-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1948 में दिया जाएगा
धन्यवाद

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16-4-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1948 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Malhotra vimmi said...

प्‍यार होता नहीं
मुकम्‍मल
कभी कि‍सी का
खुद को समझा तो लूं
तुम्‍हें
समझाने से पहले

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां।

Unknown said...

सुन्दर प्रस्तुति .

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... पर इस सफ़र में चोट तो खानी पड़ती है .., यही जीवन है ... सुन्दर रचना ...

Onkar said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

dr.sunil k. "Zafar " said...

मैं दरि‍या का पानी
तू पतवार
आ चूम लूं तुझको
फि‍र नई
चोट खाने से पहले

excellent..